रायपुर। हमारी भारतीय संस्कृति देव संस्कृति है। धर्मशास्त्रों के अनुसार जब जब यहाँ धर्म की हानि होती है तब तब “धरम हेतु अवतरेहु गोंसाईं” इस धरती पर भगवान भी धर्म की रक्षा के लिये अवतरित होते हैं। ” विप्र धेनु सुर संत हित , लीन्ह मनुज अवतार।” हमारे सनातन धर्म की चार मुख्य स्तम्भ विप्र (ब्राम्हण) , धेनु (गाय) , सूर (देवता) और संत यानि साधु महात्मा है। ये सभी चारों स्तम्भ इस समय खतरे में हैं। प्रथम स्तम्भ विप्र (ब्राह्मणों) दुर्दशा पर विचार करते हैं। कश्मीर में कश्मीरी पंडितों को मार काटकर वहांँ से भगा दिया गया है। दूसरी स्तम्भ धेनु (गाय) की दुर्दशा आज किसी से छिपी नहीं है। जिस देश में सबसे पहले गौमाता के लिये गोग्रास निकाला जाता था आज वही गौ माता सड़कों पर डंडा खा रही है। प्रतिदिन सूर्यास्त से पहले लाखों गौ माताओं का कत्ल कर दिया जाता है। तीसरी स्तम्भ सूर (देवता) पर विचार करिये। आज देवता भी सरकार के अधीन हो चुके हैं। सभी मंदिरों को बोर्ड लगाकर सत्ता ने अपने कब्जे में ले लिया है। मंदिर कब खुलेगा ? उनकी पूजा कैसी होगी ? भगवान को क्या भोग लगेगा ? भक्तगण क्या पहनकर भगवान का दर्शन कर सकेंगे ? ये सभी बातें आज सरकार तय कर रही है। जिसे देश चलाने की आवश्यकता है वही सरकार आज सत्ता के मदहोश में मंदिर चलाने में मशहूर है। इसी तरह सनातन धर्म का चौथा स्तम्भ संत यानि साधु महात्मा है। ” पुण्य पूँज बिनु मिलहि ना संता” “भाग्योदयेन बहुजन्म समर्जितेन” अनेकों जन्मों के भाग्योदय से हमें संत मिलते हैं , उनका सत्संग मिलता है। जिस देश में धर्म के लिये संसार के समस्त सुखों से विरक्त रहने वाले साधु-संतों की पूजा होती है।आदिकाल से राजा उनके मार्गदर्शन और आशीर्वाद से अपने राज्य का संचालन किया करते थे। आज उसी देश में पुलिसकर्मियों के समक्ष साधुओं की बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी गयी। इस घटना की जितनी भी निंदा की जाये वह कम है। संत महात्मा तो शास्त्र और शस्त्र दोनों की शिक्षा लिये रखते हैं। साधु संत इसलिये अखाड़ा बनाकर रखे हैं कि समय आने पर वे अपनी सहनशीलता को दरकिनार करते हुये मैदान में उतर सकें। आज धर्म की रक्षा के लिये उनके मैदान में उतरने की महती आवश्यकता है।