अशोक भगत, लैलूंगा :- लैलूंगा नगर पंचायत चुनाव में कांग्रेस की एक तरफा जीत से पूरे नगर में खुशी का महौल। इस जीत का श्रेय लैलूंगा विधायक चक्रधर सिंह सिदार को जाता है। बड़े ही सूझ – बुझ के साथ इस चुनाव को कांग्रेस द्वारा लड़ा गया था। धन बल, और बाहु बल सभी का उपयोग करते हुऐ जीत हासिल की गयी 15 वार्डों मे से 11 सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की पूर्ण बहुमत के साथ अब नगर में अपनी सरकार बनाने कि तैयारी कि जा रही है। वहीं अध्यक्ष की बात करें तो सर्व प्रथम नाम श्रीमती मंजू मित्तल और सरिता पटेल का नाम सामने आ रहा है। अध्यक्ष का पद माहिला सीट होने से लगभग समान्य वर्ग से बनना तय मानी जा रही है। वहीं यदि अध्यक्ष समान्य वर्ग से बनना है, तो उपाध्यक्ष किस वर्ग से बनेगा उपाध्यक्ष में मुख्य नाम के रूप मे लगातर दूसरी बार पार्षद बने प्रेम गुप्ता, कृष्णा जयसवाल, बाबूलाल बंजारे, औऱ आदिवासी समाज कि यदि बात कि जाए तो विधायक को सम्मान देते हैं, तो मुख्य नाम रविन्द्र पाल धुर्वे है। जो भाजपा के स्टार व पूर्व एल्डेरमेन उमेश मीत्तल जैसे शख्स को मात्र 39 व्होट से चुनाव में मात देकर कांग्रेस की हारी हुई सीट को जीतकर दिखाया उमेश मीत्तल की हार का प्रमुख कारण भाजपा व निर्दलीय हैं। जिसमें आलोक गोयल जो भाजपा के परिवार का एक हिस्सा है। वे निर्दलीय प्रत्याशी को रूप में खड़े होकर 79 वोट प्राप्त किए और नरेश महन्त जो 43 वोट प्राप्त किये। इन दोनों निर्दलीय उम्मीदवीरों ने उमेश मित्तल के हार का प्रमुख कारण है। वहीं नरेश महन्त की पुत्र वधू संध्या भूकंप महंत भाजपा से वार्ड क्रमांक 4 से सरिता पटेल से मात्र दस व्होट से चुनाव हार गयी। वहीं नरेश महन्त के लड़ने से भाजपा कि दो सीट प्रभावित हुई है। हो सकता है, यदि वो नही लड़ते तो उनकी बहु चुनाव जीत जाती। और वार्ड क्रमांक 3 से उमेश मित्तल भी जीत सकते थे। रवीन्द्र पाल धुर्वे का चुनाव जीतना इतना आसान नही था। लेकिन निर्दलीय होने कारण जनता के आशीर्वाद से कांग्रेस जितने में कामयाब हो गई। उपाध्यक्ष में प्रमुख नाम के रूप में रविन्द्र पाल धुर्वे का नाम भी सामने आ रहा है। चूंकी रविन्द्र पाल ने भाजपा के स्टार को हराकर चुनाव में जीत हासिल किया है। और लैलूंगा गोंड़ समाज के मुख्य फेक्टर माना जाता है। तो ऐसे में देखना होगा कि विधायक चक्रधर सिंह सिदार रविन्द्र पाल धुर्वे को कितना महत्व देते हैं। भाजपा को छोड़कर कांग्रेस मे आना फिर कांग्रेस से लड़कर जीतना मायने तो रखता है। उपाध्यक्ष की दौड में यह नाम मुख्य है, सिदार समाज कि यह मांग क्या विधायक पूरा कर पाएंगे ? वहीं भाजपा ने मात्र 2 सीट जितने में कामयाबी हासिल कर पाई जिसमें वार्ड क्रमांक 10 व 12 दो निर्दलीय चुनाव जीतकर मैदान में आए हैं। भाजपा कि बुरी तरह हार का ठीकरा अब किसके ऊपर फूटेगा कौन लेगा ? इस हार का जवाबदारी क्या नगरीय निकाय चुनाव का असर पंचायत चुनाव में भी पड़ेगा क्या जनपद में बना पायेंगी भाजपा अपनी सरकार ? भाजपा इन दिनों बिखर चुकी है। इसका मुख्य कारण पार्टी नेतृत्व कांग्रेस विधायक का दिनों दिन बढ़ता कद भाजपा के लिये बडा नुकसान का कारण बनता जा रहा है। भाजपा कि हार का मुख्य कारण भाजपा के ही कुछ नामी चहरे हैं, जो सत्ता कि खौफ में भाजपा को लगातर नुकसान पहुचाने में लगे हुऐ हैं। भाजपा के लोग जो नगरीय निकाय चुनाव में निर्दलीय खड़े हुए थे, भाजपा क़ो नुकसान ही तो पहुचाना था। अब यह देखना यह होगा कि इनके ऊपर पार्टी हाईकमान क्या कार्यवाही करती है? पंचायत चुनाव का बिगुल भी बज चुका है। देखना यह है कि भाजपा इसमें कहां तक सफल हो पाती है ।