जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़। वनमंडल अंतर्गत छाल रेंज उत्पाती गणेश हाथी के वजह से डेंजर जोन में तब्दील हो गया है। पहले जंगलों के भीतर से गांव जाने में डर लगा रहता था लेकिन अब मुख्य मार्ग में भी राहगीरों को गणेश हाथी का भय सताने लगा है। जब हाथी ट्रक, ट्रेलर को रोककर नुकसान पहुचा रहा है तो बाईक कार और पैदल वालों को कभी भी अपने चपेट में ले सकते हैं। आज पूरे राज्य में रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ वनमंडल को पूर्ण रूप से हाथी प्रभावित क्षेत्र के नाम से जानने लगे हंै। गणेश हाथी के उत्पाती रवैय्ये से पूरे क्षेत्र में दहशत का माहौल है। फिर भी गणेश हाथी का ट्रेकर से टेग किया लोकेशन को भरपूर आम लोगों तक पहुंचाने में कंजुसाई किया जा रहा है। ऐसे में ट्रेकर लगाने का औचित्य कहीं न कहीं समझ से परे होता जा रहा है। लोगों की माने तो कुछ चंद लोगों और अधिकारियों तक ही लोकेशन सीमित रह जाता है। अगर किसी माध्यम से दिया भी जाता है तो लोकेशन रात 8 से 9 बजे मिल पाता है ऐसे में क्या जब हाथी जंगल से गांव के करीब आ जाये और लोग पुराना लोकेशन देखें। जबकि एक जानकारी मुताबिक़ हांथी प्रति घंटा 40 किलोमीटर की चाल से चलता है। ग्रामीण, मजदूरी करने जंगलों के भीतर पगडंड़ी रास्ते से आना जाना करते हैं। अगर पर्याप्त लोकेशन्स नहीं दिया जा सकता तो प्रभावित गांव के पास वाले जंगल में हाथी होने की आशंका हो, तो उस रास्ते मे पेट्रोलिंग या सर्चिंग बढ़ा देना चाहिए। आज प्राय: सभी लोग सूचना तंत्र से जुड़े हुए हैं। सभी जागरूक नागरिक हाथी की जानकारी लेने के लिए अपने क्षेत्र के वनकर्मी, वंनरक्षक दफेदार, बीटगार्ड, रेंजर से फ ोन से संपर्क साधना शुरू कर दिए तो यकीन मानिए, फोन से फु र्सत नहीं हो सकेगा। आज हम सुबह जब घर से काम पर निकलते है तो मन मे एक डर बना रहता है कि सुबह हमारा सामना कहीं हाथियों से ना हो जाये। वहीं डर शाम को घर वापसी में भी बना रहता है। बच्चों को जंगल के रास्ते स्कूल भेजने में भी हम हिचकिचाते है। कुलमिलाकर आज क्षेत्र में हाथी सभी के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। जिसका विकल्प सावधानी के अलावा और कुछ नहीं है। लेकिन समय समय पर लोकेशन्स वायरल होते रहता तो लोगों को कहां-कहां सावधानी बरतनी है कि जानकारी रहती।
डरे सहमे लोगों के लिए अब कोई क्यों नहीं जाता है माननीय उच्च न्यायालय
चारों तरफ से जंगलों से घिरा गांव और जंगल में महाकाय हाथी या हाथियों का दल विचरण कर रहा हो। बिजली गुल हो। कल्पना करिए आपके दिल पे क्या गुजरेगा। आप बाइक से या चार पहिया वाहन से कहीं जा रहें हो सामने गणेश हाथी आ जाए तो कल्पना करिए क्या होगा। इन्हीं सब मुसीबतों से लोगों को बचाने के लिए वन विभाग ने उपाय सोचा और कुमकी हाथियों के मदद से गणेश हाथी को काबू कर अन्यंत्र ले जाना चाहती थी। और गणेश हाथी को ट्रक में लोड भी किया जा चुका था लेकिन किसी महाशय ने माननीय उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और फि र ऐसा करने से मना कर दिया गया। और अब फि र गणेश हाथी के वजह से लोग डरे सहमे जान हथेली में लेकर जीवन जीने मजबूर हैं। इनके पक्ष में कोई क्यों नहीं जाता माननीय उच्च न्यायालय?
इस संबंध में जब हमारे संवाददाता ने वनमंडलाधिरी प्रियंका पांडेय से बात की तो उन्होंने बताया कि लोकेशन्स हमें सेटेलाइट के माध्यम से लेना पड़ता है। जिसका भुगतान करना पड़ता है। हम लोग दिन में चार बार हाथियों के लोकेशन लेते हैं। जिसका समय प्रात: 5.30 बजे फि र 9.30 बजे और संध्या 5.30 बजे फि र रात्रि 9.30 बजे। उन्होंने कहा कि जब-जब हमें लोकेशन मिलता है तब-तब हम हमारे मैदानी कर्मचारियों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं।