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चुनाव चंदा और एफआईआर का फंदा

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आपकी बात

संजीव वर्मा

देश में लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी म्यान से तलवार निकाल ली हैं। योद्धा आमने-सामने है। मुख्य मुकाबला एनडीए और इंडिया के बीच होगा। घात प्रतिघात का दौर शुरू हो चुका है। विपक्ष जहां चुनावी बॉण्ड यानी चंदा को लेकर आक्रामक दिख रहा है। तो सत्तापक्ष मोदी की गारंटी का दम भर रहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चुनावी बॉण्ड के खुलासा होने के बाद विपक्ष मान रहा है कि उसे एक बड़ा राजनीतिक हथियार मिल गया है। 2018 में चुनावी बॉण्ड योजना लागू होने के बाद से भाजपा को इसके माध्यम से सबसे अधिक 6986.5 करोड़ रूपये की धनराशि प्राप्त हुई है। इसके बाद प.बंगाल की तृणमूल को 1397 और कांग्रेस को 1334 करोड़ रूपये मिले हैं। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बॉण्ड से संबंधित सभी विवरण की जानकारी देने का फि र निर्देश दिया है। न्यायालय ने बैंक को 21 मार्च तक क्रेता और प्राप्तकर्ता राजनीतिक पार्टी के बीच के संपर्क को दर्शाने वाले यूनिक बॉण्ड नंबरों की भी जानकारी देने को कहा है। निश्चित रूप से इससे साफ हो जाएगा कौन कितना, किसको चंदा दिया है। विपक्ष इस पर लगातार सवाल उठाता रहा है। ऐसे में यह देखना होगा कि कौन कितने पानी में हैं। फिलहाल भाजपा को सबसे ज्यादा चंदा मिला है और विपक्ष इसी को लक्ष्य भी बना रहा है। भाजपा भले ही अपने बचाव में तर्क दे रही है कि बाकी दलों के चंदे को मिला दिया जाए, तो वह भाजपा से ज्यादा हो जाता है। यह अपनी जगह ठीक है, लेकिन विपक्ष में कई दल हैं, जबकि भाजपा अकेले। हालांकि, उसने अपने 303 सांसदों का हवाला भी दिया है। लेकिन यह किसी के गले नहीं उतर रही है। चंदे के बदले धंधे की भी गूंज हो रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष के वार पर भाजपा कैसे पलटवार करेगी। इधर, छत्तीसगढ़ में एक बार फि र महादेव सट्टा ऐप का जिन्न बोतल से बाहर निकल आया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर एफआईआर होने के बाद कांग्रेस आक्रामक हो गई है। महादेव सट्टा ऐप मामले में ईओडब्ल्यू ने भूपेश बघेल सहित 19 लोगों को नामजद और अन्य को अज्ञात आरोपी बनाया है। इन पर धोखाधड़ीए जालसाजी, आपराधिक साजिश रचने और भ्रष्टाचार अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत जुर्म दर्ज किया गया है। खास बात यह है कि यह एफ आईआर ईडी के प्रतिवेदन पर रायपुर में 4 मार्च को दर्ज की गई थी। लेकिन, 17 मार्च को यह दिल्ली से प्रकाशित हुई। कांग्रेस इस मसले पर कई सवाल खड़े कर रही है। उसका कहना है कि एफ आईआर दर्ज करने के बाद 13 दिन तक इंतजार क्यों इसके पीछे की मंशा ही साबित करती है कि यह भाजपा के लोकसभा चुनाव में हार का डर और बदनाम करने का षडय़ंत्र है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि जब एफ आईआर दर्ज की गई। उस समय मीडिया में राजनांदगांव से प्रत्याशी बनाने के लिए मेरा नाम चल रहा था। जाहिर है कि भाजपा ने डर कर आनन-फ ानन में साजिश के तहत उनका नाम दर्ज करवाया है। उन्होंने कहा कि एफ आईआर के साथ जो विवरण दिया गया। उसमें मेरा नाम का कहीं जिक्र नहीं है। विवरण में संरक्षण देने का भी कहीं उल्लेख नहीं है। उन्होंने कहा कि सिर्फ राजनीतिक कारणों से उनका नाम शामिल किया गया है। भाजपा मान रही है कि राजनांदगांव सीट से उनके मैदान में रहने से राज्य की बाकी सीटों के परिणामों पर भी असर पड़ेगा। इसलिए बदनाम करने का षडय़ंत्र रचा गया। उन्होंने तल्ख लहजे में कहा कि भाजपा कोई भ्रम न पाले कि एफआईआर में नाम डालकर उन्हें डरा लेगी या उनकी राजनीति प्रभावित कर लेगी। पहले भी वो ऐसा करके देख चुकी है। यह सच भी है। भूपेश बघेल 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले कथित सीडी कांड में जेल भी जा चुके हैं। उनकी छवि सीधे-सपाट बिना लाग-लपेट के बोलने वाले एक आक्रामक राजनेता की है। प्रदेश में वे कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता हैं। ऐसे में उन पर एफआईआर कर भाजपा क्या वास्तव में राजनीतिक लाभ लेना चाहती है या मामला कुछ और है। हालांकि यह सब जांच का विषय है। बहरहाल, एफआईआर के बहाने ही सही कांग्रेस में एकता दिखाई देने लगी है। सभी बड़े नेता एकजुट दिख रहे हैं। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि प्रदेश की जनता इसे किस रूप में लेगी खासकर राजनांदगांव पर सबकी नजरें लगी होगी।

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