संजीव वर्मा
आखिरकार जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने पाला बदल ही लिया। यह आश्चर्यजनक नहीं बल्कि उम्मीदों के अनुरूप है। क्योंकि नीतीश कुमार समय-समय पर पाला बदलते रहे हैं। कभी भाजपा के साथ नहीं जाने की कसम खाने वाले नीतीश ने आखिर ऐसा क्यों किया। यह पर्दे के पीछे की राजनीति है। लेकिन माना जा रहा है वह तेजस्वी के बढ़ते प्रभाव और इंडिया गठबंधन में अपनी उपेक्षा से परेशान थे। खैर, जो होना था वह हो गया। लेकिन नीतीश के इस कदम ने इंडिया को बैकफ ुट पर लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है। दूसरी ओर भाजपा के बल्ले-बल्ले हो गई है। उसने अबकी बार 400 पार के नारे को फलीभूत करने की पहली सीढ़ी पार कर ली है। भाजपा बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव की जीत को हर हाल में दोहराना चाहती है, जो नीतीश के बिना संभव नहीं था। भाजपा ने इसके लिए प्रख्यात समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न,देने की घोषणा की। जो सीधे निशाने पर लगी। चूंकि कर्पूरी ठाकुर बिहार के पिछड़ा वर्ग से थे। इसलिए माना जा रहा था कि भाजपा ने विपक्षी गठबंधन इंडिया के सामाजिक न्याय और जातीय जनगणना की काट के रूप में यह निर्णय लिया है। पिछले कुछ दिनों से इंडिया गठबंधन और उनके नेता जातीय जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाने में लगे हुए थे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तो अपनी सभा में न केवल इसका जिक्र करते रहे हैं बल्कि घोषणा भी कर चुके थे कि यदि केंद्र में उसकी सरकार बनी तो देश में जातीय जनगणना कराएंगे। वहीं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में कराए गए जातीय जनगणना की रिपोर्ट भी जारी कर चुके थे। ऐसी स्थिति में भाजपा के सामने बड़ी चुनौती थी, कि वह इससे कैसे निपटेंगी ऐसे में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा कर नया दांव चला था। यह सच है कि बिहार में जातिगत राजनीति हावी है और इसका चुनाव में बड़ा असर होता है। यही वजह है कि अब मोदी के इस दांव से जदयू राजद दोनों हैरान परेशान हो गए थे। हालांकि अपनी प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा था कि वे पहले से ही कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की मांग कर रहे थे। बहरहाल, भाजपा अयोध्या में भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा के जरिए हिंदुत्व की राजनीति को नई धार देने के बाद कर्पूरी ठाकुर के बहाने सामाजिक समीकरण को भी साधने में सफल होती दिख रही है। इस बीच, विपक्षी गठबंधन इंडिया में दरार और नीतीश के साथ आने से भाजपा बेहद उत्साहित है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पं.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के एकला चलो का राग अलापने के बाद गठबंधन में फूट स्पष्ट दिखाई देने लगी है। ममता बनर्जी ने अपने राज्य में अकेले ही चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साथ वार्ता असफ ल होने के बाद यह फैसला लिया गया है। इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बारे में उन्हें किसी ने सूचित नहीं किया। यहां यह बताना लाजिमी है कि पं. बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें है। खबरें थी कि कांग्रेस ने राज्य में टीएमसी से 10 से 12 सीटों की मांग की थी। लेकिन टीएमसी उसे 2 से 4 सीटें देना चाहती थी। वहीं, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी दो टूक जवाब दे दिया है। मान ने कहा कि उनकी पार्टी पंजाब में कांग्रेस के साथ नहीं जा रही है। उन्होंने कहा कि उनकी तैयारी राज्य की सभी 13 सीटों पर चुनाव लडऩे की है। दरअसल कांग्रेस पंजाब में अपने कब्जे वाली 8 में से एक भी सीट आप को नहीं देना चाहती। वहीं आप का कहना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उसे भले ही एक सीट पर जीत मिली हो पर विधानसभा चुनाव में उसे प्रचंड बहुमत मिला है। यही कारण है कि वह कांग्रेस के हिस्से वाली भी कुछ सीटें मांग रही है। वैसे पंजाब के लिए पहले से ही कहा जा रहा था कि वहां कांग्रेस आप में तालमेल होना मुश्किल है। लेकिन ममता के तेवर ने गठबंधन के दिग्गजों की चिंता बढ़ा दी है। हालांकि यह भी खबरें है कि ममता ने दबाव बनाने के लिए ऐसा बयान दिया है। फि लहाल कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल का प्रयास किया है। लेकिन देखना होगा कि वह इसमें सफल हो पाती है या नहीं। बहरहाल, भाजपा के कर्पूरी ठाकुर के बहाने सामाजिक न्याय और जातिगत समीकरण को साधने और नीतीश के पाला बदलने से इंडिया गठबंधन के अस्तित्व पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि अखिलेश सहित अन्य सहयोगियों की सधी प्रतिक्रिया गठबंधन में आस जरूर जगाती हैं लेकिन यह नाकाफी है, क्योंकि सभी अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे हैं।