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मलका के महाप्रबंधक का खोखला दावा और प्रयोजित प्रचार की हकीकत … निर्धारित प्रक्रिया के पालन बिना विकास की कहानी मनगढ़ंत

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जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़। किसी भी विकास परियोजना के क्रियान्वयन के लिए शासन द्वारा निर्धारित नियम कानून के पालन की अनिवार्यता तय की जाती है। यह इसलिए कि पारदर्शिता के साथ विकास कार्य का संचालन किया जा सके। निश्चित रूप से ऐसे कार्यों में स्थानीय समुदाय के हित निहित होते हैं जो कि हर परियोजना का अनिवार्य हिस्सा होता है। यह अलग बात है कि कई अन्य उद्योग समूहों द्वारा ग्रामीणों को रोजगार व अन्य निर्धारित सुविधाएं मुहैया कराने का दावा किया गया लेकिन दशकों बाद भी प्रभावित अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विकास का एक रुप ऐसा भी है जिसमें क्षेत्र का राजनीतिक प्रतिनिधित्व करने वाले दिग्गजों के क्षेत्र के ग्रामीण आज भी अपने अधिकारों के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। बहरहाल हम बात कर रहे हैं धरमजयगढ़ में प्रस्तावित एक लघु जल विद्युत परियोजना की। जिसके लिए प्रभावित क्षेत्र में तेजी से काम चालू हो गया है। पानी से बिजली उत्पादन करने के इस बड़े प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन मलका रिन्यूएबल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी द्वारा किया जा रहा है। बता दें कि शासन द्वारा निर्धारित नियमों के तहत इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिली है लेकिन अब इस प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन के बारे में तय किये गए नियम व शर्तों को लेकर मलका कंपनी व स्थानीय प्रशासन द्वारा अलग-अलग बातें कही जा रही हैं। इस प्रोजेक्ट में प्रभावित किसानों के हितों की अनदेखी करने के मामले में पिछली रिपोर्ट में हमने बताया था कि बिना किसी वैध प्रक्रिया के कंपनी निजी जमीन का उपयोग कर रही है। जिसके संबंध में धरमजयगढ़ एसडीएम डिगेश पटेल ने तब बताया था कि कंपनी द्वारा प्रभावित निजी जमीन की खरीदी की जाएगी। कथनी और करनी में अंतर इस मामले पर पूर्व में की गई एक रिपोर्ट प्रकाशन के बाद कंपनी के महाप्रबंधक के हवाले से किए गए इस दावे के साथ दूसरी खबर आई कि नियमानुसार प्रभावित किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा। इस खबर में कंपनी का समर्थन करने वाली कुछ अन्य बातों का भी उल्लेख किया गया। लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण व तीसरे पक्ष यानी स्थानीय प्रशासन को शामिल नहीं किया गया। ऐसे में यह संबंधित कंपनी का प्रायोजित प्रचार-प्रसार का एक मामूली प्रयास मात्र लगता है। यह कंपनी के महाप्रबंधक द्वारा भूमि अधिग्रहण के कथित दावे को इसलिए भी हल्का करता है क्योंकि इस प्रायोजित गुणगान में स्थानीय प्रशासन के आला अधिकारी का पक्ष रखने से परहेज किया गया। तो यह हैरान करने वाली स्थिति है जिसमें किसी भी संबंधित व जिम्मेदार पक्ष को यह ठीक ठीक पता नहीं है कि वास्तव में परियोजना से संबंधित निजी जमीन के उपयोग के संबंध में किस तरह की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। यह अविश्सनीय है कि बिना किसी निर्धारित प्रक्रिया के एक बड़े परियोजना का काम शुरू कर दिया जाता है और संबंधित कंपनी के कथनी और करनी में जमीन आसमान का फ र्क नजर आता है। ऐसा इसलिए कि एक ओर मलका कंपनी के महाप्रबंधक के हवाले से यह बताया जा रहा है कि प्रभावित किसानों की जमीनों का अधिग्रहण शासन के नियमों के मुताबिक किया जाना है जबकि इसके उलट यह बात सामने आई है कि कंपनी द्वारा जमीन की खरीदी की गई है। संबंधित विभाग के एक जिम्मेदार ने कंपनी द्वारा जमीन खरीदे जाने की पुष्टि की है। प्रक्रिया को लेकर बढ़ रहा संशय इस प्रकार यह मामला और पेचीदा होते जा रहा है जिसमें यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि निजी जमीन की खरीदी होगी या अधिग्रहण। दोनों प्रक्रियाओं के लिए अलग-अलग नियम कानून बने हुए हैं। तो प्रयोजित प्रचार के रुप में कंपनी का यशोगान करने के फेर में इस बात को बुरी तरह नजर अंदाज किया गया है कि जब किसी कार्य के लिए निर्धारित मापदंड स्पष्ट नहीं होते हैं तो उसे किसी भी पैमाने पर विकास के रुप में नहीं देखा जा सकता है। यह कहना गलत है कि कंपनी लगने से क्षेत्र का विकास नहीं होगा। बिलकुल होगा, लेकिन जब तक यह बात स्पष्ट नहीं हो जाती कि विकास किन मापदंडों से होकर गुजरेगा, तब तक उसे अंधाधुन विकास के रुप में ही पहचाना जाता रहेगा। यह भी कि विकास नितांत आवश्यक है लेकिन प्रभावित किसानों की जमीनों को लेकर अनिश्चित वर्तमान को देखते हुए इस प्रोजेक्ट से लोगों के सुनहरे भविष्य का कपोल कल्पित और प्रयोजित प्रोपेगैंडा न केवल भ्रामक बल्कि विशुद्ध रूप से मनगढ़ंत भी लगता है। बेहतर होगा कि प्रशासन व मलका कंपनी आपस में मिलकर पहले यह तय कर लें कि आखिर प्रभावित किसानों के हित के लिए किन निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करना है।

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