जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़।
नगर पंचायत धरमजयगढ़ में पिछले तीन महीना से लुका छिपी का खेल खेला जा रहा है। शासन-प्रशासन और नगर पंचायत धरमजयगढ़ के अध्यक्ष पद को लेकर यह खेल खेला जा रहा है। इस खेल में माननीय उच्च न्यायालय का भी अहम भूमिका है। इस पूरे खेल में शासन प्रशासन से लेकर विधायक की भूमिका भी सन्देह के दायरे में है। उक्त आरोप लगाते हुए प्रदेश भाजपा किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष और नगर पंचायत में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम पटेल ने कहा की धरमजयगढ़ नगर पंचायत का हाल देखकर लगता है की यंहा की गतिविधि से शासन भी रही ले रही है और तुरंत नियम भी बनाये जा रहे हैं। विदित हो की धरमजयगढ़ नगर पंचायत में भी पंद्रह पार्षद है। यहां पिछड़ा वर्ग महिला के लिए अध्यक्ष का पद आरक्षित् है। और इस वर्ग से केवल एक महिला विजयी होकर आई है लेकिन बहुमत भाजपा के पास है। लेकिन यहां मजबूरी का नाम इंदिरा गांधी वाली कहावत चरितार्थ होते दिख रही है। आरक्षित् वर्ग से एक ही महिला जीत कर आने से भाजपा कुछ नहीं कर सकी लेकिन समय का इंतजार जरूर करती रही और समय आते ही अविस्वाश प्रस्ताव लाकर अध्यक्ष को पद से हटाने में विपक्ष एवं नाराज पार्षद सफ ल रहे।और यहां से शुरु हुआ शासन प्रशासन का खेल। अध्यक्ष के हटने के बाद विधि सम्मत उपाध्यक्ष को अध्यक्ष का पदभार सौप दिया गया। लगभग महीना भर बाद कांग्रेस की एक अन्य पार्षद भावना जेठवानी को शासन ने अध्यक्ष मनोनीत कर दिया। कुछ दिनों बाद माननीय उच्च न्यायालय का फैसला आया की भावना जेठवानी को अध्यक्ष बनाना गलत है। और तात्कालिक उपाध्यक्ष टार्जन भारती की याचिका पर शासन प्रशासन को फ टकार लगाई। न्यायलय के फ टकार के बाद आनन फ ानन में पुन: अध्यक्ष चुनाव हेतु पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति की घोषणा कर दी गई। अब यहां कई सवाल खड़े होते है। पहला सवाल यह की पुन: उसी वर्ग से अध्यक्ष का चुनाव करना है तो ऐसी स्थिति में अविस्वाश प्रस्ताव लाने का विकल्प ही हटा देना चाहिए। क्योकि धरमजयगढ़ नगर पंचायत जैसी स्थिति कभी कभार यदा कदा ही बनती है।और अगर उसी आरक्षण के अनुसार अध्यक्ष बनाना है तो सम्मिलन की क्या आवश्यकता है। सर्व विदित है की उस वर्ग से एक ही महिला है तो जैसे भावना जेठवानी को अध्यक्ष मनोनीत किये थे वैसी ही तरुना साहू के लिए भी शासन को आदेश कर देना चाहिए। इस पूरे घटनाक्रम में और नियमावली पर ध्यान दें तो नियम 41 के तहत पार्षद तरुणा साहू अयोग्य हो चुकी है कलेक्टर चाहे तो पार्षद पद से हटा सकते हैं। पार्षद को वापस बुलाने के लिए धारा 41 के तहत दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है जो की भाजपा एवं अन्य पार्षद साबित कर चुके हैं।