Home छत्तीसगढ़ नक्कार खाने की तूती ना बन जाये आदिवासियों की आवाज..

नक्कार खाने की तूती ना बन जाये आदिवासियों की आवाज..

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नितिन सिन्हा🖋️से

हर साल की तरह इस साल भी आज 9/अगस्त 2022 यानी आज के दिन हम आप विश्व आदिवाशी दिवस मनाने जा रहे हैं..

आज के दिन केद्र और राज्य सरकार की तरफ से कई स्थानों में बड़ेबड़े कार्यकर्मों का आयोजन भी किया जायेगा.इस अवसर पर दोनो सरकारों के प्रतिनिधि खुद को आदिवासी भाईबहनो का सबसे बड़ा हितैषी बताने में लगे रहेंगे । मगर कुछ घंटों बाद ही इनके चेहरे और मन का भाव पूरी तरह से बदल जाएगा।। मंच से उतर कर अपने घर या कार्यालय जाते समय यही आदिवासी भाई_बहन इनको नक्सली या देश के विकास विरोधी तत्व नजर आयेंगे। उन्हें बीच चौराहे मारने या बिना आरोप के ही जेल भेजने में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी। मुट्ठी भर जमीनी आदिवासी नेता संगठित होकर संवैधानिक संघर्ष करने की बात कहेंगे।। जबकि हर बार की तरह दूसरे अन्य बड़े स्वंभू आदिवासी नेता या तो सरकारी या फिर आदिवासियों से उनका हक छीनने वाले पूंजी पतियों के पक्ष में खड़े नजर आयेंगे।। इस पर कुछ बड़ी विपक्षी राजनैतिक पार्टियां खुद को आदिवासियों हितैषी भी बताएगी.क्योंकि इन्ही आदिवासियों के बल पर उनकी सत्ता में वापसी की संभावनाएं नजर आती दिखेंगी ।।

आपने देखा होगा कि देश में आजादी के बाद सालों से यही होता आया हैं।। आज के दिन हर बार की तरह बड़े_बड़े मंचों से आदिवासी हितों और विकास की बातें तो कही जायेंगी।। पर सवाल यह उठेगा कि क्या यथार्थ में आदिवासियों का विकास होगा भी. या.. नही..? ..शायद नही.।।

संभवत: आज के बाद फिर आदिवासी हितों की ये आवाजें पुनः एक साल के लिए कहीं गूम हो जायेगी।। कल से फिर यही आदिवासी जन कथित सभ्य समाज का हित साधने के साधन मात्र बन जायेंगे..कोई इन्हें झूठे अधिकार पूर्ति के नाम पर मारेगा या मरवायेगा।। कोई अपने बेजा अधिकारों का प्रयोग इन बेबस,लाचार और सीधे_साधे वनवासियों पर करेगा।। वस्तुत: एक दिन बाद याने कल से ही जेलों में वापस इनकी संख्याएं बढ़ेगी,पुलिस डायरी में इनका नाम बढ़ेगा,मुठभेड़ों में रोजाना इनकी मौतें बढ़ेंगी,मुखीबिरी के नाम पर इनकी नृशंस हत्याओं का सिलसिला भी चलेगा।। सच कहूं तो कल के बाद इन्हे पूछने वाला भी कोई नही होगा।।

इसके साथ ही अकेले हमारे राज्य के विभिन्न जेलों में बंद करीब १६ हजार आदिवासी बंदी (जिनमे से चार हजार अति समान्य या कृत्रिम अपराधिक प्रकरणों में सालों से जेल में निरुद्ध हैं) वो आगामी साल के आदिवासी दिवस तक सरकारी वायदों के पूरे होने की प्रतिक्षा करेंगे।।

इधर मैदानी इलाकों में भी बचे_खुचे आदिवासियों की जमीनें हमारे द्वारा चालाकी से सिर्फ इस नियत से छीनी जाएंगी ताकि हम असंतोषी सभ्य वर्ग की कभी न खत्म होने वाली भूख को कुछ समय के लिए तृप्त किया जा सके।। इस तरह फिर एक साल बीत जाएगा और हम आप वापस नया विश्व आदिवासी मनाएंगे।

इस तरह आने वाले कई और सालों तक विश्व आदिवाशी दिवस की सार्थकता सिद्ध हो पाएगी,इस बात पर संदेह बना रहेगा।। सही शब्दों में कहें तो आज के सरकारी उत्सव के बाद कल से ही पुनः आदिवासी हित और अधिकारों की बातें सिर्फ नक्कार खाने तूती ही बनकर रह जाएगी।

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