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सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी जारी है प्राइवेट स्कूलों की मनमानी

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भोपाल। मध्य प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी निजी स्कूलों की मनमानी जारी है। मात्र 3 फीसदी स्कूलों ने ही अब तक फीस की जानकारी स्कूल शिक्षा विभाग के पोर्टल पर साझा की है। स्कूल शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर समय सीमा बीतने के बाद भी मात्र 3 फीसदी निजी स्कूलों ने ही आधी-अधूरी फीस का ब्यौरा दिया है। प्रदेश सरकार ने निजी स्कूलों के जानकारी साझा न करने पर सुप्रीम कोर्ट से अब 6 सप्ताह का समय मांगा है।
प्रदेश भर में 51,283 निजी स्कूलों में से महज 1307 निजी स्कूलों ने ही फीस की जानकारी दी है। इंदौर में 3084 स्कूलों में से सिर्फ 60, भोपाल में 2496 स्कूलों में से मात्र 93 स्कूलों ने ही फीस जानकारी साझा की है। फीस की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए निजी स्कूलों को 3 सितंबर 2021 तक का समय दिया गया था। समय सीमा बीत जाने के बाद भी निजी स्कूलों ने फीस की जानकारी सार्वजनिक नहीं की है।
मांगा 6 सप्ताह का समय
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग को 2 सप्ताह का समय दिया था, जो बीत गया। निजी स्कूलों की फीस की सारी जानकारी दो सप्ताह के के भीतर सुप्रीम कोर्ट में देनी थी। तय समय सीमा 4 सितम्बर 2021 के बाद भी निजी स्कूलों ने स्कूल शिक्षा विभाग के एजुकेशन पोर्टल पर जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। 8 दिन का समय बीतने के बाद भी मात्र 3 फीसदी स्कूलों ने ही फीस की आधी अधूरी जानकारी पोर्टल पर अपलोड की है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि कक्षा पहली से लेकर कक्षा बारहवीं तक के छात्र-छात्राओं से कितनी और किस मद निजी स्कूल फीस ले रहे हैं। यह पूरी जानकारी निजी स्कूलों को सार्वजनिक करनी होगी। अब सुप्रीम कोर्ट में निजी स्कूलों की सारी जानकारी देने को लेकर प्रदेश सरकार ने 6 सप्ताह का समय मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने अब स्कूल शिक्षा विभाग को 6 सप्ताह का समय दे दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह दिया था निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग को जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश जारी किया था। शासन को यह जानकारी लेकर दो सप्ताह के ऑनलाइन करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय हाईकोर्ट द्वारा स्कूलों को सिर्फ ट्यूशन फीस लेने के फैसले को लेकर दिया है। पालक संघ मध्य प्रदेश ने निजी स्कूलों की मनमानी फीस को लेकर हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी। सबसे बड़ी बात कि यह डबल बेंच का फाइनल आदेश है, इसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश सीधे सरकार को दिए हैं।

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