भोपाल । जानलेवा म्यूकरमाइकोसिस फंगस से पीड़ित मरीज ठीक होने के बाद पुन: संक्रमित हो जा रहे हैं। हमीदिया अस्पताल से छुटटी हो जाने के बाद ऐसे ही 10 मरीज दोबारा भर्ती हुए हैा फंगस से पीडति मरीजों की तकलीफ कम नहीं हो रही। कई मरीज ऐसे हैं, जिनकी स्वस्थ होने के बाद अस्पताल से छुट्टी कर दी गई। कुछ दिन ठीक रहे। बाद में संक्रमण बढ़ा तो फिर से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अकेले हमीदिया अस्पताल में हफ्ते भर के भीतर इस तरह के 10 मरीज भर्ती हो चुके हैं। इसमें तीन का संक्रमण तो ज्यादा बढ़ गया था। उनकी दोबारा सर्जरी करनी पड़ी। हमीदिया में जो 10 मरीज दोबारा भर्ती हुए हैं, उनमें पांच दूसरे राज्यों के अस्पतालों में पहली बार भर्ती रहे हैं। इसमें एक विशाखापट्टनम और एक नागपुर का मरीज भी शामिल है। बाकी पांच मरीजों में भोपाल के निजी अस्पतालों और हमीदिया अस्पताल के पूर्व मरीज हैं। हमीदिया अस्पताल से दस दिन पहले स्वस्थ हो चुका एक मरीज छुट्टी होने के बाद अब जैनम श्री अस्पताल में भर्ती हुआ है। दोबारा संक्रमण होने की बड़ी वजह यह है कि मरीजों का पूरा इलाज किए बिना ही अस्पतालों से छुट्टी की जा रही है। इस बीमारी का इलाज करीब छह हफ्ते चलता है।
इसमें करीब चार हफ्ते तक मरीज को अस्पताल में रखा जाता है। इस बीच दो से तीन बार इंडोस्कोपिक जांच की जाती है। इसमें यह देखा जाता है कि संक्रमण कम हो रहा है या बढ़ रहा है। म्यूकरमाइकोसिस के मरीज बढ़ने पर अस्पतालों में इसके लिए सुरक्षित बिस्तर कम पड़ गए हैं। इसके इलाज के लिए जरूरी इंफोटेरिसिन इंजेक्शन की भी कमी हो गई। लिहाजा, 10 से 15 दिन के भीतर ही अस्पतालों से मरीजों की छुट्टी कर दी गई। एक मरीज को 40 इंजेक्शन की जरूरत होती है। कुछ को एक दिन में तीन से चार इंजेक्शन लगते हैं, लेकिन इसकी उपलब्धता पर्याप्त नहीं होने की वजह से मरीजों को 10 इंजेक्शन भी नहीं लग पाए। इंजेक्शन की जगह उन्हें पोसोगोनाजोल टैबलेट दी गई जो इंजेक्शन से कम कारगर है। अलग-अलग कंपनी का एक इंजेक्शन पांच हजार से आठ हजार रुपये में आता है। कुछ मरीज इसका खर्च नहीं उठा पाए तो उन्होंने अस्पताल से छुट्टी करा ली। इस बारे में हमीदिया अस्पताल ईएनटी विभाग सह-प्राध्यापक डॉ. यशवीर जेके का कहना है कि हमीदिया अस्पताल में 10 मरीज ऐसे भर्ती हुए हैं, जिनका संक्रमण दोबारा बढ़ा है। हालांकि, इनमें कोई गंभीर नहीं है। दोबारा संक्रमण बढ़ने की कई वजह हैं। दवाओं का पूरा कोर्स लेने के साथ ही करीब छह हफ्ते तक डॉक्टर की निगरानी में रहना जरूरी है।