भोपाल । अजब-गजब एमपी में मप्र मेडिकल युनिवर्सिटी के कुलपति ने 24 घंटे में अपने ही आदेश को पलट दिया। विवि के जिस एग्जाम कंट्रोलर डॉ. वृंदा सक्सेना पर छात्रों को पास-फेल कराने के गंभीर आरोपों की पुष्टि हुई, उसी एग्जाम कंट्रोलर से वीसी ने पहले प्रभार छीना और फिर अगले ही दिन बहाल कर दिया। सोशल मीडिया में कुलपति के दोनों आदेश वायरल होने के बाद अब किरकिरी हो रही है। विवि सूत्रों की मानें तो भोपाल की एक महिला अधिकारी के फोन से एग्जाम कंट्रोलर को हटाने का निर्णय बदला गया है।
व्यापमं की तर्ज पर मेडिकल यूनिवर्सिटी में हुए रिजल्ट घोटाले की परत दर परत खुलने लगी है। इस घोटाले में कई लोगों ने लाखों का वारा-न्यारा किया है। जिस ठेका कंपनी को पारदर्शिता के लिए लाया गया था। उसी ने कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर यह खेल किया है। कई नर्सिंग और डेंटल प्राइवेट कॉलेज के छात्रों के प्रेक्टिकल में नंबर बदल दिए गए हैं। गंभीर अनियमितता में फंसे एग्जाम कंट्रोलर डॉक्टर वृद्धा सक्सेना से जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर कुलपति प्रोफसर टीएन शुक्ला ने प्रभार छीन लिया था। लेकिन 24 घंटे के अंदर ही शनिवार 19 जून की शाम को कुलपति ने अपना ही निर्णय पलट दिया।
पहले हटाया फिर सौंपा दायित्व
18 जून को विवि की ओर से आदेश निकाला गया कि शासन स्तर से जांच प्रतिवेदन के संबंध में अग्रिम आदेश प्राप्त होने तक डॉक्टर वृंदा सक्सेना को तत्काल प्रभाव से एग्जाम कंट्रोलर के कार्य से हटाया जा रहा है। 19 जून शनिवार को मप्र आयुर्विज्ञान विवि की ओर से दूसरा आदेश जारी हुआ। इसमें कहा गया कि एक दिन पहले के आदेश को निरस्त किया जाता है। वर्तमान में संचालित परीक्षाओं छात्र हित को देखते हुए डॉक्टर वृंदा सक्सेना को फिर से एग्जाम कंट्रोलर का दायित्व सौंपा जा रहा है।
ठेका कंपनी पर सालों से मेहरबानी विवि
एक तरफ एग्जाम कंट्रोलर पर मेहरबानी दिखाई जा रही है। दूसरी ओर ठेका कंपनी पर विवि कई सालों से मेहरबान बना हुआ है। फेल-पास को लेकर जांच के घेरे में आयी ठेका कंपनी ने रिजल्ट के साथ ही आर्थिक घोटाला भी किया है। अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके कंपनी के संचालन का खर्च भी विवि से वसूलती रही। जबकि अनुबंध के अनुसार कामकाज से संबंधित संसाधनों के लिए विवि और निजी कंपनी- माइंड लॉजिक्स इन्फोटेक बेंगलुरु को मिलकर खर्च उठाना था।
इंटरनेट के एवज में लाखों का भुगतान
निजी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ने अनुबंध शर्तों को कभी पूरा नहीं किया। शर्त के विपरीत विवि ने निजी कंपनी के बिजली, इंटरनेट बिल की राशि अपने मद से जमा की, जबकि आधी राशि सर्विस प्रोवाइडर कंपनी को देनी थी। विवि ने एक साल का इंटरनेट का बिल 41 लाख रुपए दूरसंचार कंपनी को दिया है। इसकी आधी रकम आज तक ठेका कंपनी ने जमा नहीं कराई है। अधिकारियों की इस दरियादिली के पीछे मोटा कमीशन बताया जा रहा है।
किराया और बिजली बिल में भी छूट
विवि ने रिजल्ट का ठेका माइंडलॉजिक्स कंपनी को सौंपा था। मंशा थी कि इससे पारदर्शिता आएगी, लेकिन हुआ उलटा। इसके बावजूद ठेका कंपनी को अनुबंध शर्तों के विपरीत पहले किराए में राहत दी गई और फिर बिजली बिल भी विवि की मद से जमा हो रहा है। यह खेल सालों से चल रहा हे।