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कोरोना पैदा करने के लिए चीन को ही क्यों मान रहे हैं दोषी

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मॉन्ट्रियल। दु‎नियाभर के विशेषज्ञ कोरोना वायरस के संक्रमण के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका दावा है कि यह खतरनाक वायरस चीन के वुहान शहर में स्थित वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी से लीक हुआ था। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना को कई बार चीनी वायरस बता चुके हैं। कनाडा के मॉन्ट्रियल में स्थित यूनिवर्सिटी डु क्यूबेक मॉन्ट्रियल के एसोसिएट प्रोफेसर बेनोइट बारब्यू ने बताया कि अब भी दुनिया के अधिकतर लोग कोरोना को पैदा करने के लिए चीन को ही क्यों दोषी मान रहे हैं।

 बेनोइट बारब्यू ने कहा कि कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से, सार्स-कोव-2 की उत्पत्ति को लेकर तरह तरह के कयास लगाए गए हैं। अब तक, इनमें से कोई भी विचार किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंच पाया है। पहले कहा गया था कि वुहान सीफूड बाजार की वजह से यह वायरस तेजी से फैला। कोरोनावायरस एक तीसरे माध्यम के जरिए चमगादड़ से मनुष्यों में पहुंचा। ऐसा भी नहीं है कि यह पहली बार हुआ है। मार्स-कोव (मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) के मामले में, ऊंटों को इसके प्रसार के संभावित माध्यम के तौर पर देखा जाता है। इसी तरह सार्स-कोव-2 के मामले में वुहान बाजार में अवैध रूप से बेचे जाने वाले पैंगोलिन, माध्यम हो सकते हैं, हालांकि इस विचार को सही ठहराने के लिए अधिक ठोस सबूत की आवश्यकता है। मैं मॉन्ट्रियल में यूनीवर्सिटी डु क्यूबेक में जैविक विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हूं, विषाणु विज्ञान में एक विशेषज्ञ, विशेष रूप से मानव रेट्रोवायरस में, और मानव कोरोनावायरस में। सार्स-कोव-2 के गलती से एक अधिकतम सुरक्षा वाली जैव प्रयोगशाला, जिसका जैव सुरक्षा स्तर- 4 है, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (डब्ल्यूआईवाई) से लीक होने की बात महामारी की शुरूआत से ही कही जा रही है।

हाल के हफ्तों में यह संभावना फिर से सामने आई, जिसने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (एनआईएआईडी) के निदेशक डॉ एंथनी फौसी को शर्मिंदा कर दिया, कुछ समाचार पत्रों का दावा है कि अमेरिका इस शोध प्रयोगशाला को वित्त पोषित कर रहा था और यह दावा भी किया गया कि वहां लाभ के लिए होने वाले अध्ययन से संबंधित परियोजनाओं का वित्त पोषण किया जाता है। अमेरिका सरकार ने इस अध्ययन के पूर्ण परिणामों को प्रकाशित नहीं करने का भी आग्रह किया, यह तर्क देते हुए कि सूचना का उपयोग जैव आतंकवादियों द्वारा किया जा सकता है। शोध 2013 में फिर से शुरू किया गया था। गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च में महामारी की क्षमता वाले वायरस के पशु-से-मानव संचरण को रोकने में मदद करने की क्षमता है। हालांकि, इस प्रकार के शोध को अत्यधिक सुरक्षित प्रयोगशाला में किया जाना चाहिए, जिसे बीएसएल -4 के रूप में जाना जाता है।

इन प्रयोगशालाओं को कर्मचारियों और शोधकर्ताओं को संक्रमित होने से बचाने और अन्य किसी भी तरह के रिसाव को रोकने के लिए बनाया गया है। हालांकि, अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों के दस्तावेजों से पता चला है कि डब्ल्यूआईवी में बीएसएल-4 प्रयोगशाला में जैव सुरक्षा मानक पर्याप्त रूप से कठोर नहीं थे। इसके अलावा, कई शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया था कि चमगादड़ कोरोनावायरसों पर संस्थान का गेन-ऑफ-फंक्शन अध्ययन जोखिम भरा था और अगर वह निकल गया तो मनुष्यों के लिए हानिकारक हो सकता है। यही कारण है कि वुहान लैब से लीक के कारण सार्स-कोव-2 की उत्पत्ति की परिकल्पना को अब गंभीरता से लिया जा रहा है।

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