Home छत्तीसगढ़ चार श्रम संहिता मजदूरों के साथ क्रूर मजाक है-अभय

चार श्रम संहिता मजदूरों के साथ क्रूर मजाक है-अभय

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बिलासपुर- छ.ग.प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता अभय नारायण राय ने मोदी सरकार द्वारा लाये जा रहे 4 श्रम संहिता का कड़ा विरोध करते हुए इसे मजदूरों के साथ किया जाने वाला क्रूर मजाक कहा है 44 कानूनों को 4 कानूनों में सिमेटने से मजदूरों में हताशा और निराशा बढ़ेगी। अभय नारायण राय प्रवक्ता ने विज्ञप्ति में आगे कहा है कि इस चार श्रम संहिताओं का कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पहले ही कड़ा विरोध करते हुए कहा था कि ये कानून “गरीबों का शोषण, अमीरों का पोषण“ वाला बताया है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अभय नारायण राय ने कहा है कि मजदूरों ने कई वर्ष के कड़े संघर्ष एवं आंदोलन से अपना खून पसीना लगाकर एक-एक श्रम कानून सरकार से बनवाये थे उन सभी श्रम कानूनों को बदल कर चार नये श्रम संहिता के नाम से पुनः लाकर उस जबरदस्ती लागू करने की मंशा है जो गलत है क्योंकि संविधान के अनुसार श्रम समवर्ती का विषय है, जिस पर केन्द्र राज्यों से सलाह एवं सुझाव लेकर उस पर कानून बना सकता है, एकतरफा कार्य संविधान विरूद्ध है। मजदूरों के द्वारा आंदोलन से – भारतीय श्रम कानून 1926, व्यवसाय संघ अधिनियम 1926, औद्योगिक संबंध अधिनियम 1926, वेतन भुगतान अधिनियम 1936, बोनस भुगतान अधिनियम 1965, ठेका एवं संविदा श्रमिक कानून, कर्मकार क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923, कारखाना अधिनियम 1948, न्यूनतम वेतन भुगतान अधिनियम 1948, औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947, मातृत्व अवकाश लाभ 1961, भवन सन्ननिर्माण कर्मकार संघ 1996 आदि-आदि बनवाये थे। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अभय नारायण राय ने कहा है कि पूर्व के कानूनों में मजदूरों को अधिक अधिकार एवं सुविधायें प्राप्त है। नियोक्ता यदि मजदूर की जायज मांगों को ना माने तो मजदूरों का इसके खिलाफ आंदोलन करने का प्रावधान है जिसे समाप्त किया जा रहा है। वहीं मजदूर को कारण बताओ नोटिस दिये बिना अवैधानिक छटनी/बर्खास्तगी किये जाने पर उस लेबर कोर्ट में जाने का अधिकार है उसे भी इस नये कानून से समाप्त कर दिया जायेगा। पुराने कानून से किसी उद्योग में 20 मजदूर कार्यरत होने पर वहां मजदूरों को प्रतिमाह ई.पी.एफ. कटौती व अन्य प्रावधान उपलब्ध है जिसे नये कानून में बढ़ाकर 20 के स्थान पर 300 मजदूरों की संख्या कर दी गई है जिससे उद्योगपतियों का इससे सीधा लाभ मिलेगा। मजदूरों को नुकसान होगा तथा इससे स्थायी नौकरी समाप्त होगी और अस्थायी या ठेके मजदूरी प्रथा को बढ़ावा मिलेगा। मजदूरों के काम के घंटे 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे प्रतिदिन किये जा रहे हैं जो मजदूरों के स्वास्थ्य के साथ अन्याय होगा।

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