जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़। आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में अस्सी प्रतिशत लोग खेती कार्य कर अपना जीवन यापन करते हैं।धान का कटोरा से प्रसिद्ध सत्तर प्रतिशत किसान धान का खेती करते हुए बम्फर उत्पादन करते हैं।पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर ही आधारित है।तथा इनका मुख्य भोजन चावल है।मेहनती सीधे साधे लोग मोटा अनाज मोटी कपड़ा में खुश रहते हैं अपने उपज का लगभग उपज एमएससी दर में मंडी में बेचते हैं।तथा प्रदेश में खाद्यान्न योजना के तहत सभी वर्गों को उचित मूल्य की दुकान से सरकार द्वारा राशन दिया जाता है।छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद जोगी सरकार द्वारा उचित मूल्य की दुकान से बीपीएल, एपीएल, अंत्योदय कार्डधारकों को तथा मनरेगा योजना के तहत मजदूरी का भुगतान मोटा अनाज व उसना चावल का वितरण किया जाता था।15 वर्षों की रमन सरकार उसना चावल के बदले अरवा चावल में परिवर्तन कर दिया गया।कुछ जिले को छोड़कर सभी जिलों में अरवा चावल का वितरण किया और अब तक चल रहा है।जिसमें रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ तहसील में भी वितरित किया जा रहा है।धरमजयगढ़ तहसील में यदि 100 लोगों का मेडिकल जांच कराया जाए तो 30 लोग पथरी व 40 लोग शुगर बीमारी से ग्रसित होंगे।पथरी होने का मुख्य कारण पानी, इस क्षेत्र का पानी कोयला जनित है तथा होने का मुख्य कारण हमारा भोजन जिसमें मुख्य रूप से अरवा चावल जो मीठा है।विगत 18 वर्षों से क्षेत्र में सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अरवा चावल का ही वितरण किया जा रहा है।जनता उपयोग में भी ले रही है।रायगढ़ के पड़ोसी जिला के जनता के मांग अनुसार उसना चावल वितरण किया जा रहा है।चूंकि मिलर को भी फायदा है।100 किलो धान में 67 किलो अरवा तो उसना 68 किलो देना होता है।मिलर चार्ज बराबर पर उसना चावल में टूट फुट नहीं होता।मिलर को अपना चावल मिलिंग करने में फायदा होता है।उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश में तथा अन्य प्रदेश जहाँ के लोग मुख्य रूप से चावल सेवन करते हैं।वहाँ उसना चावल का वितरण किया जाता है।तथा वहां के बहुत ही कम लोग शुगर बीमारी से ग्रसित हैं।स्वस्थ से बड़ा धन नहीं, सम्मान से बड़ा अर्थ नहीं इसलिए धरमजयगढ़ नगर पंचायत तथा ग्राम पंचायतों के जनताओं के द्वारा अरवा चावल के बदले उसना चावल का जशपुर जिले की तरह रायगढ़ धरमजयगढ़ ब्लाक व नगर में भी उचित मूल्य की दुकानों में उसना चावल का वितरण करने की आवाज उठ रही है।