वॉशिंगटन । वर्ष 2023 में नासा चंद्रमा पर अपना पहला मोबाइल रोबॉट भेजने जा रही है। यह घोषणा स्वयं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने की है। इस महत्वपूर्ण मिशन को नासा ने वाइपर मिशन नाम दिया है। इसका मकसद चंद्रमा की सतह के अंदर बर्फ तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों की तलाश करना है। इस रोबॉट को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के चारों ओर प्राकृतिक संसाधनों का नक्शा भी बनाना है। नासा ने इसके लिए 43 करोड़ डॉलर का बजट भी जारी कर दिया है।
वाइपर मिशन में ऐसे हेड लाइट लगाए गए हैं जिससे यह रोवर चांद के उन हिस्सों की जांच कर सकेगा जो छाया के कारण अंधेरे में रहते हैं। नासा के प्लेनटरी साइंस डिवीजन के डायरेक्टर लोरी ग्लेज ने कहा, ‘वाइपर से मिला डेटा हमारे वैज्ञानिकों को यह पता लगाने में मदद करेगा कि चंद्रमा की सतह पर कहां पर और कितनी बर्फ है। साथ ही हम अर्तेमिस मिशन के अंतरिक्षयात्रियों की तैयारी के लिए यह जान सकेंगे कि चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर कैसा पर्यावरण है और क्या संभावित संसाधन वहां मौजूद हैं।’ लोरी ग्लेज ने कहा, ‘यह इस बात का शानदार उदाहरण है कि कैसे रोबोटिक साइंस मिशन और मानवीय खोज एक साथ चल सकती है और क्यों यह जरूरी है। वह भी तब जब हम चंद्रमा पर स्थायी उपस्थिति के लिए तैयारी कर रहे हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने इस रोवर को बनाने पर करीब 43 करोड़ 35 लाख डॉलर खर्च किए हैं। वाइपर चंद्रमा पर नासा की ओर से भेजा गया सबसे सक्षम रोबॉट होगा। यह हमें चंद्रमा के उन हिस्सों की जांच करने का मौका देगा जिनके बारे में कोई जानकारी अब तक नहीं मिली है। यह मिशन हमें चंद्रमा पर पानी की उत्पत्ति और उसके वितरण के बारे में बताएगा। इससे आगे चलकर अनंत ब्रह्मांड में अंतरिक्षयात्रियों को भेजने में मदद मिलेगी। इस पानी की खोज नासा की स्ट्रेटोस्फियर ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (सोफिया) ने की है।
सोफिया ने चंद्रमा के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित,पृथ्वी से दिखाई देने वाले सबसे बड़े गड्ढों में से एक क्लेवियस क्रेटर में पानी के अणुओं (एच2O) का पता लगाया है। पहले के हुए अध्ययनों में चंद्रमा की सतह पर हाइड्रोजन के कुछ रूप का पता चला था, लेकिन पानी और करीबी रिश्तेदार माने जाने वाले हाइड्रॉक्सिल (ओएच) की खोज नहीं हो सकी थी। बता दें कि नासा ने चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की है। बड़ी बात यह है कि चंद्रमा की सतह पर यह पानी सूरज की किरणें पड़ने वाले इलाके में खोजी गई है। इस बड़ी खोज से न केवल चंद्रमा पर भविष्य में होने वाले मानव मिशन को बड़ी ताकत मिलेगी। बल्कि, इनका उपयोग पीने और रॉकेट ईंधन उत्पादन के लिए भी किया जा सकेगा।