कोरबा । जिले में हुई बारिश के कारण फड़ में सूखने के लिए रखे तेंदूपत्ते भीग गए। फड़ में नमी और बदली को देखते हुए समितियों में तेंदूपत्ता संग्रहण एक दिन के लिए स्थिगित कर दिया। कोरोना संक्रमण के बाद पत्तों के संग्रहण में मौसमी समस्या आड़े आ रही है। ऐसे में लाकडाउन की आर्थिक समस्या से जूझ रहे संग्राहकों में निराशा देखी जा रही है।
तेंदूपत्ता संग्रहण के समय में संग्राहको के तीहरे समस्या से गुजरना पड़ रहा है। कोरोना संक्रमण के चलते लाकडाउन लगने से ग्रामीणों की सामान्य काम कमाई बंद हो गई थी। ऐसे में उन्हे तेंदूपत्ता संग्रहण का बेसब्री से इंतजार हो रहा था। जब पत्तों के संग्रहण का समय आया तो हाथियों का उपद्रव शुरू हो गया। जिन वन क्षेत्रों में हाथियों की समस्या नहीं थी वहां मौसम ने आफत खड़ी कर दी। कोरबा और कटघोरा वन मंडल के 87 समितियों से जुड़े वन क्षेत्रों में तेंदूपत्ता तैयार हो चुका है, लेकिन पिछले तीन दिनों से जारी मौसमी उतार चढ़ाव के कारण पत्तों का संग्रहण नहीं हो रहा। आम तौर पर पत्तों की तोड़ाई एक मई से शुरू हो जाती है लेकिन इस बार समय रहते पत्तों के तैयार नहीं होने छइ मई से संग्रहण शुरू करना तय किया गया। उस पर मौसमी मार ने संग्रहण पर रोक लगा दी है। जिल में इस बार एक लाख 38 हजार मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण का लक्ष्य रखा गया है। इसमें अकेले कोरबा वन मंडल का 52 हजार मानक बोरा शामिल है। मौसम साफ होने से यहां 33 समितियों में संग्रहण शुरू किया गया था। मगर दूसरे दिन फड़ों के गीले होने और पत्तों के खराब होने की संभावना को देखते हुए संग्रहण एक दिन के बंद करा दिया गया है। फड़ मुंशियों की माने तो बारिश से अब तक संग्रहित पत्तों को नुकसान हुआ है।
जिले के 87 में से 34 समितियों के पत्तों की खरीदारी पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्यम प्रदेश और कर्नाटक के ठेकेदारों ने की है। कोरोना काल में बाहर से पहुंचे ठेकेदार और उनके कर्मचारियों को 14 दिन का समय क्वारंटाइन सेंटर में काटना पड़ा। ऐसे में फड़ों में उनकी उपस्थिति देर से हुई है। समय रहते फड़ में तोड़ाई शुरू नहीं होने से पत्ते मुलायम से खरे होते जा रहा है। खरे पत्ते उपयोगी नहीं होते। फड़ में ऐसे पत्तों की वापसी से संग्राहकों को घाटा होगा।