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आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है… 100 किमी दूर बैठे दोस्त की वीडियों के माध्यम से मिली मदद

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इन्दौर । वास्तव में आवश्यकता नही आविष्कार की जननी है। इसका प्रमाण एक डॉक्टर ने दिया है। सनावद के श्री सांई अस्पताल के संचालक व डॉ. अजय मालवीय के मित्र प्रदीप साने को अचानक फ्लो-मीटर की जरूरत हुई। प्रदीप ने इन्दौर के कई मेडिकल शॉप पर फ्लो-मीटर ढूंढ़ा, लेकिन मिल नहीं पाया। ऐसी आपात स्थिति में इन्दौर के मनीषपुरी निवासी प्रदीप ने अपने डॉक्टर मित्र मालवीय को सनावद में कॉल कर आवश्यकता बताई। डॉ. मालवीय के अच्छे परिचित होने व एक डॉक्टर होने के बावजूद कोई हेल्प नहीं करने पर घर में मौजूद वस्तुओं के उपयोग से ही फ्लो-मीटर बनाने की तकनीक आधे घंटे में सुझी। डॉ. मालवीय ने पहले एक डायग्राम बनाया। उसके बाद उन आवश्यक वस्तुओं की सूची बनाकर एकत्रित की और फिर उन सब के संयोजन से एक अत्यंत अस्थाई उपयोगी फ्लो-मीटर बना दिया। इसके बाद डॉ. मालवीय ने अपने मित्र को डायग्राम और आवश्यक वस्तुओं की सूची तथा प्रयोगात्मक वीडियों बनाकर भेज दिया। जब प्रदीप ने इसका बखुबी इस्तेमाल किया व उपयोग साबित हुआ, तो डॉक्टर के मन में ऐसे ही कई लोगों को सहयोग करने की भावना जागी और उन्होंने अपनी फेसबुक पर वीडियों पोस्ट कर दिया।

:: इन वस्तुओं ने बनाया फ्लो-मीटर ::

डॉ. मालवीय ने जानकारी देते हुए बताया कि हालांकि मेडिकल शॉप पर फ्लो-मीटर मिल जाते है, लेकिन ऐसी आपात स्थिति आने पर अस्थाई तौर पर घर में मौजुद वस्तुओं से ही फ्लो-मीटर बनाया जा सकता है। इसके लिए 20 एमएल की सीरींज, एक ट्यूब व मास्क, सिलेंडर, एक लीटर की खाली बोटल व आधा लीटर पानी की आवश्यकता होती है। सबसे पहले सीरींज की नीडिल और सीरींज के प्रेशर बटन (जिसकों अंगुठे से धकेला जाता है) उसको निकाल ले और फिर सीरींज के अंतिम हिस्से को काटकर हल्का छील दे। क्योंकि इसी छिले हुए हिस्से को सिलेंडर की नॉब में अंदर करना होता है। एक लीटर वाली पानी की बोटल में आधा लीटर पानी डाले और ढक्कन के नीचे वाले हिस्से छेंद कर नली के हिस्से को पानी में डूबा दें। इसके बाद पानी के ढ़क्कन में छेद कर सीरींज के उपरी हिस्से को जिसको पूर्व में निकाला गया था, उसमें अंदर डालकर नली को कनेक्ट करना है, जो मास्क के साथ में कनेक्ट होती है। अब सीरींज के उस हिस्से को सिलेंडर की नॉब में डालना है, जिसको छीला गया था। इसके बाद सिलेंडर की चाबी को बिल्कुल आहिस्ता-आहिस्ता घुमाते हुए खोलना है। ध्यान रखें बोटल में डायरेक्ट ऑक्सीजन पानी में नली के माध्यम से छोड़े और जो ऑक्सीजन लेनी है, वह ढ़क्कन से कनेक्ट की गई नली के माध्यम से लेना है।

:: क्यों आवश्यक है फ्लो-मीटर?

डॉ. अजय मालवीय ने जानकारी देते हुए बताया कि किसी भी मरीज को ऑक्सीजन देने में फ्लो-मीटर का बड़ा महत्व है। फ्लो-मीटर किसी भी मरीज को दी जाने वाली ऑक्सीजन की गति को नियंत्रित करता है। आवश्यकता से अधिक व सीधे दी जाने वाली ऑक्सीजन मरीज के लिए बहुत ही हानिकारक होती है। इसलिए अस्थाई व्यवस्था के लिए जो फ्लो-मीटर बनाया है, उसमें भी ऑक्सीजन को पहले सीधे पानी में छोड़ा गया है और फिर पानी से होकर बोतल की ऊपरी हिस्से से मास्क के सहारे मरीज को कनेक्ट किया गया है। फ्लो-मीटर ऑक्सीजन की एक तो स्पीड कंट्रोल करता है और दूसरा प्राकृतिक रूप से पानी में हृमूटिफॉयर बनाकर पानी के साथ दी जाती है, जिससे लंग्स में कोई समस्या न आएं।

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