Home समाचार करंट से हाथियों की मौत के मामले में जितनी जिम्मेदार विद्युत विभाग...

करंट से हाथियों की मौत के मामले में जितनी जिम्मेदार विद्युत विभाग उससे कहीं ज्यादा जवाबदार वन विभाग…? दुनिया के आंखों में धूल झोंकना आज पड़ रहा मंहगा

77
0

धरमजयगढ़-जोहार छत्तीसगढ़। बिजली करंट से हाथियों के मरने का सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है। बल्कि यह कहें कि जब से यहां हाथियों का आगमन हुआ है तब से ही बिजली से उनकी मरने का सिलसिला जारी है। साथ ही साथ जहरखुरानी से भी हाथियों की मौत का क्रम चल रहा है। बिजली के एलटी लाइन में कभी हाथियों के शरीर छू जाने से मौत हो जाती है तो कभी अस्थाई रूप से किसानों द्वारा अपने कृषि कार्य के लिए ली गई लाइट कनेक्शन होता है। अब सवाल उठता है कि हाथियों के मौत का दोषी कौन? मैं यहां बताना चाहूंगा कि हाथियों की मौत के दोषी अगर हम विद्युत विभाग को मानते हैं तो उससे कहीं ज्यादा दोषी वन विभाग है। पूरे वन मंडल में जिस प्रकार वनों का क्षेत्रफल फैला हुआ है उसी प्रकार वन विभाग में उसके अमला भी पहले हैं। वन सुरक्षा समिति, लघु वनोपज समिति, वनरक्षक, फायर वाचर, नाका, डिप्टी रेंजर, रेंजर, एसडीओ और हाथी मित्र दल जैसे तमाम लोग वन विभाग से जुड़े हुए हैं। हाथियों का दल कहां है, इन्हें पल-पल की रिपोर्ट रहती है। अगर किसी रिहायशी क्षेत्र में इन हाथियों के आने की सूचना मिलती है तो इन्हे सबसे पहले उस क्षेत्र में जाकर देखना चाहिए कि कहां विद्युत के तार अस्त-व्यस्त पड़े हैं या तार खंभे से नीचे झूल रहे। ऐसी हालातों में विद्युत विभाग को सूचित कर तत्काल कनेक्शन को विच्छेद कराना चाहिए। जब भी हाथी वन्यजीव किसी करंट से मरने की सूचना वन विभाग को मिलती है तो वहां जाकर बहाना बाजी ढूंढने लगती है। अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए एक दूसरे के ऊपर! आरोप मढ़ने लगती है। यही वह धरमजयगढ़ वन मंडल है जहां कोल माइंस खदान के लिए आवंटित किया गया है उस समय वन विभाग ने शासन को जानकारी दी है कि यहां किसी प्रकार के वन्य प्राणी हाथी अन्य जीव-जंतु नहीं रहते। तभी यहां चार चार कोल माइंस को परमिशन दिया गया है। इसी तरह रेल कॉरीडोर हेतु भी यहां जंगली हाथियों अन्य वन्य प्राणियों के नहीं होना बताया गया है तब यह रेल कॉरीडोर बन रहा है। हाथियों का गढ़ कहे जाने वाला धरमजयगढ़ वन मंडल के वन परीक्षेत्र धरमजयगढ़, छाल, कापू, बोरो ऐसे जो परिक्षेत्र है जहां पर हमेशा हाथियों का रहना होता है। इसमें क्रोंधा, साम्हरसिंघा, पुरुंगा, गेरवानी, आमापाली, सेमीपाली, आम गांव, कीदा, गेरसा, ओंगना, बोरो, जबगा, फत्तेपुर, उदउदा, रुपुंगा, नरकालो, बलपेदा, पोरिया, नेवार, सिरकी, संगरा, जमरगी, छाल क्षेत्र के तमाम गांव को एलिफेंट रिजर्व से दूर रखा गया है और यहां रेल लाइन बिछाने का काम चल रहा है।यह सब बताना यहां इसलिए लाजिमी है कि अगर वास्तविकता की जानकारी वन विभाग पहले देती तो यहां ना कोई रेल कॉरिडोर का निर्माण होता और ना ही वन क्षेत्र अंतर्गत बसने वाले गांव को नंगे तार से विद्युत सफ्लाई दिया जाता।ना यहां कोल माइंस आबंटित किए जाते बल्कि इन पूरे वन क्षेत्र को एलिफेंट रिजर्व में शामिल किया जाता। इसी तरह शासन प्रशासन एवं जनता के आंखों में धूल झोंकना आज स्वयं विभाग को महंगा पड़ रहा है। और निरंतर हाथियों का मरना जारी है।कल्पना करिए जब इन बीहड़ जंगलों से रेल गाड़ी गुजरेगी तब इन बेजुबानों का क्या गति होगा।

आरोपी पर सहायक यंत्री कर रहे थे कार्यवाही

धरमजयगढ़ के गेरसा में किसा क्षयन द्वारा लिए गए अस्थाई विद्युत कनेक्शन में हाथी के करंट से मौत का मामला बना रहे सहायक यंत्री पर ही साक्ष्य छुपाने का जुर्म दर्ज कर लिया गया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here