जोहार छत्तीसगढ़-रांची। अनुसूची राज्यों के आदिवासियों को खुद को प्रमाणित करने के लिए किसी जन्म प्रमाणपत्र देने की जरूरत नहीं हैं, इन आदिवासियों का प्रमाणपत्र इनका जल, जंगल, जमीन, पहाड़ और नदी हैं। बल्कि अनुसूची क्षेत्रों में रह रहे अवैध घुसपैठियों को अपना जल, जंगल, जमीन, पहाड़ और नदी का प्रमाणपत्र पीढ़ी दर पीढ़ी का देना जरूरी होना चाहिए। भारत के संविधान में आदिवासी इलाकों के लिए दो तरह की व्यवस्था की गई हैं। पहली व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 244(1) के तहत पाँचवीं अनुसूची’ की व्यवस्था की गई है। दूसरी व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 244(2) के तहत छठीं अनुसूची’ की व्यवस्था की गई है। इसलिए लिए अनुसूची क्षेत्रों में NPR( नेशनल पोपुलेशन रजिष्ट्रर) की नहीं बल्कि SPR( शिड्यूल पापुलेशन रजिष्ट्रर) की आवश्यकता है। जहाँ अवैध तरीके बड़ी-बड़ी कम्पनियाॅ लगाई जा रही हैं। हर साल अनुसूची क्षेत्रों में बाहरी लोगों का लगातार घुषपैठी जारी हैं।
सरकार NPR( नेशनल पोपुलेशन रजिष्ट्रर) के तहत विकास करने की योजनाएं बना रहा है तो माननीय सरकार से निवेदन है यह है कि भारत के जितने भी गैर अनुसूची राज्य है जहाँ आदिवासी एक निश्चित क्षेत्र में घनी आबादी के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी से निवास करते आ रहे है ऐसे क्षेत्रों को ‘ अनुसूची क्षेत्र’ घोषित करें?
इसके साथ भारत के सभी अनुसूची राज्य जो भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक संसाधनों के लिहाजे से पिछड़ा हुआ है। वहाॅ ‘विशेष राज्य का दर्ज़ा ‘ लागू करवाए ताकि असम, नगालैंड जम्मू-कश्मीर,अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल और उत्तराखंड जैसे राज्यों की तरह लाभ मिल सकेगा। विशेष राज्य का दर्जा लागू होने पर, केन्द्र विशेष राज्य का दर्जा पाने वाले राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा दी गई राशि में 90% अनुदान और 10% रकम बिना ब्याज के कर्ज के तौर पर मिलती है। जबकि दूसरी श्रेणी के राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा 30% राशि अनुदान के रूप में और 70% राशि कर्ज के रूप में दी जाती है। इसके अलावा विशेष राज्यों को एक्साइज, कस्टम, कॉर्पोरेट, इनकम टैक्स आदि में भी रियायत मिलती है। केंद्रीय बजट में प्लान्ड खर्च का 30% हिस्सा विशेष राज्यों को मिलता है। विशेष राज्यों द्वारा खर्च नहीं हुआ पैसा अगले वित्त वर्ष के लिए जारी हो जाता है। विशेष राज्य का दर्ज़ा लागू होने से भारी संख्या में आदिवासियों का पलायन, विस्थापन, मानवतस्करी, भूखमरी, बेरोजगारी रूकेगी तथा इसके साथ-साथ आदिवासियों का सार्वांगिण विकास होगा।