उमा, धरमजयगढ़। धरमजयगढ़ विकासखण्ड में 118 पंचायत आते हैं। और सभी पंचायतों का विकास हो, लोग शिक्षित हो करके ग्रामीण अंचल के लोगों के सरकार द्वारा उन्हें कई प्रकार का लाभ एवं सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। और सरकार द्वारा उन्हें राशि भी स्वीकृत किया जाता है। लेकिन उन गरीब ग्रामीण लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। यदि ग्रामीणों को सुविधा मिल भी जाता है तो वो भी आधी अधूरी क्योंकि ये कार्य के लिए सरकार द्वारा अपने गांव के सरपंच-सचिव को राशि दिया जाता है। ताकि ग्रामीण अंचल के लोगों को अपनी मूलभूत सुविधा पहुंच सके इसलिए शासन द्वारा अपने-अपने पंचायत के सरपंच-सचिव को नौकरी में रखकर उन्हें वेतन दिया जाता है। लेकिन इन सरपंच-सचिव की मिलीभगत को कौन समझे ये लोग पहले अपना मूलभमत सुविधा को देखते है उसके बाद गरीब ग्रामीण जनता की। शासन द्वारा चलाए जा रहे योजना के माध्यम से योजना का लाभ ग्रामीण जनता को नहीं मिल पा रहा है। जैसे- प्रधानमंत्री आवास, स्वच्छ भारत मिशन के तहत चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान, शौचाजय, बिजली, पानी व्यवस्था जैसे कई कार्य योजना सरपंच-सचिव को सौंपा गया है। ताकि इनके माध्यम से ग्रामीणों को सुविधा एवं लाभ प्राप्त हो। लेकिन इन सरपंच-सचिव तो इतने पावरफुल होते है कि मत पूछो ये किसी गरीब ग्रामीण जनता के नहीं सुनते हंै। अपने मन के राजा होते हैं। यदि किसी ग्रामीण हितग्राही का शौचालय या प्रधानमंत्री आवास निर्माण यदि स्वीकृत होता है तो अपने हिसाब से कार्य करवाते हैं। और किसी ठेकेदार को ठेका पद्धति में निर्माण करवाने को सौंप देते हैं। वो भी स्तरहीन निर्माण करवाया जाता है। यदि शौचालय निर्माण होता है तो किसी शौचालय में सीट नहीं तो किसी दरवाजा नहीं तो किसी का छत नहीं या किसी का रिकार्ड में बन गया है। या तो आधा-अधूरा सामान वितरण कर छोड़ दिया जाता है। जैस- छड़, ईंट, बालू आदि। और यदि किसी गरीब हितग्राही का आवास निर्माण होना है तो अपने पंचायत के राजा द्वारा वो आवास निर्माण होता है। वो भी गुणवत्ताहीन होता है। आवास निर्माण में सही सामान का उपयोग नहीं किया जाता है। और छत गिरने का डर बना रहता है। या आधा-अधूरा निर्माण कर छोड़ दिया जाता है पर अपने रिकार्ड के माध्यम से पूर्ण हुआ रहता है। और हितग्राही के नाम की राशि स्वीकृत कर आहरण भी हो जाता है। बिना निर्माण कार्य के इसकी जांच अनके अधिकारी भी नहीं करते हैं। और राशि को स्वीकृत कर आहरण भी करवा दिया जाता है बिना आवास और शौचालय निर्माण पूर्ण हुए। यदि इसकी जानकारी किसी पंचायत के ग्रामीण जनता द्वारा पूछकर इनकी सत्ययता किसी अखबार या समाचार पत्र के माध्यम से प्रकाशित किया जाता है तो ग्राम पंचायत के सचिव द्वारा पत्रकारों से चैलेंज किया जाता है। और इनका पावर तो आसमान छूते रहता है और पत्रकारों से चैलेंज करने लगते हैं कि आपके अखबार में हमारे पंचायत के खिलाफ दिन-प्रतिदिन समाचार प्रकाशित होते रहता है।
मामला है ग्राम पंचायत सोनपुर का सचिव मदन मोहन बेहरा जो लैलूंगा से स्थानांतरण होकर धरमजयगढ़ जनपद पंचायत में आये हैं बताया जाता है कि जब ये लैलूंगा में पदस्थ थे तो वहां खुब घोटला बाजी किया है जिसकी शिकायत होने पर इस सचिव का स्थानांतरण धरमजयगढ़ हुआ है। पर यहां भी इनके वहीं हाल है। ग्राम पंचायत सोहानपुर का घोटाला का समाचार पढ़ कर इनता खिन्ह हो गये कि सचिव मदन मोहन बेहरा सामाचार प्रकाशित करने कितना पैसा लेंगे हम देंगे हमारे हिसाब से समाचार प्रकाशिक करो जितना पैसा लेगेगा मैं दूंगा बोलने लगा। पंचायत सचिव यदि कोई अखबार में ग्राम पंचायत की विकास कार्य की सत्ययता को लोगों के सामने या सामाचार पत्र के माध्यम से उजागर होता है। तो पंचायत सचिवों द्वारा पत्रकारों से चैलेंज करते है कि समाचार प्रकाशित करने का कितना पैसा लोगे हम देने के लिए तैयार हैं। क्यों नहीं चैलेंज करेंगे ये पंचायत के राजकुमार जो हैं क्योंकि गरीब ग्रामीण हितग्राही का राशि तो इनके पास है।