जोहार छत्तीसगढ़-लैलूंगा।
केंद्र सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री आवास योजना के नाम पर लैलूंगा नगर पंचायत में महाघोटाला सामने आया है। इस घोटाले ने न सिर्फ सरकारी तंत्र की नाकामी को उजागर किया, बल्कि भ्रष्टाचार के एक बड़े नेटवर्क का पर्दाफाश भी किया है। इस पूरे खेल के तहत गरीबों के नाम पर सरकारी राशि हड़पने की कड़ी खुली है, और यह साबित हो गया है कि सरकारी अधिकारियों, ठेकेदारों और कर्मचारियों के बीच एक गहरी साजिश थी।
सीपी श्रीवास्तव का भ्रष्टाचार का काला चेहरा?
फर्जी जिओटैग और फर्जी फोटोज के खेल में करोड़ों की लूट घोटाले की शुरुआत सीपी श्रीवास्तव, तत्कालीन प्रभारी सीएमओ के कार्यकाल में हुई, जब फर्जी जिओटैग और फर्जी फोटो अपलोड के जरिए कई आवासों का भुगतान किया गया। फुलेश्वरी यादव और जयकुमार यादव के नाम पर स्वीकृत आवास ग्राम पंचायत रुडुकेला में बनाए गए, जबकि आवास की स्वीकृति लैलूंगा नगर पंचायत की सीमा के भीतर दी गई थी। इस सबके बीच सीपी श्रीवास्तव की भूमिका ने यह साबित कर दिया कि यह घोटाला बड़ी साजिश का हिस्सा था।
फर्जी जिओटैग से आवास की रकम का गबन
सुखदेव शाह, जिनके नाम पर आवास की स्वीकृति दी गई थी, का असली आवास कभी बना ही नहीं। फिर भी फर्जी जिओटैग और फर्जी फोटो अपलोड के जरिए सरकारी राशि हड़प ली गई। और सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि एक अन्य व्यक्ति, सुखदेव सिदार के नाम से आवास की राशि का भुगतान किया गया, जिसका लैलूंगा से कोई संबंध नहीं था। यह सिर्फ़ एक झूठा खेल था, जिसमें गरीबों की मेहनत की कमाई पर डाका डाला गया।
बिना आवास बने ही राशि का आहरण
्र अब संकुवर मुंडा का मामला सामने आया, जिनके नाम पर आवास स्वीकृत हुआ था, लेकिन वह कभी बना ही नहीं। फर्जी जिओटैग के सहारे कोई वृद्ध महिला की फोटो अपलोड की गई, और फिर राशि का भुगतान किया गया। संकुवर मुंडा को तो खुद नहीं पता था कि उनके नाम पर आवास स्वीकृत हुआ था, और ना ही वह जानते थे कि उनकी राशि निकाल ली गई थी। यह शासकीय राशि का गबन और लूट का एक बड़ा उदाहरण है।
सीपी श्रीवास्तव का कबूलनामा, फिर भी कार्रवाई से बच रहे
सीपी श्रीवास्तव ने खुद स्वीकार किया कि उनके कार्यकाल में यह घोटाला हुआ था। उन्होंने एक पत्र में यह तक लिखा कि उनके अधीनस्थ कर्मचारी और ठेकेदार इस घोटाले में शामिल थे, लेकिन फिर भी किसी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। क्या भ्रष्टाचारियों को जानबूझकर बचाया जा रहा है?
राज्यसभा सांसद देवेंद्र प्रताप सिंह का आदेश, फिर भी लैलूंगा प्रशासन क्यों नहीं की कोई कार्रवाई?
राज्यसभा सांसद देवेंद्र प्रताप सिंह ने इस घोटाले को गंभीरता से लेते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था। लेकिन, जब यह मामला सांसद के आदेश के बावजूद ठंडे बस्ते में चला गया, तो सवाल उठता है क्या लैलूंगा प्रशासन में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की इ’छाशक्ति है? या फिर कहीं ना कहीं यह घोटाला राजनीतिक संरक्षण में हो रहा है?
केंद्र सरकार की कड़ी चेतावनी, फिर भी राज्यसभा सरकार आंखें मूंदे क्यों बैठी?
केंद्र सरकार ने इस घोटाले को अत्यंत गंभीर मानते हुए छत्तीसगढ़ सरकार से कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की थी, लेकिन राज्यसभा सरकार ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की। क्या यह सिर्फ एक घोटाले का पर्दाफाश है, या यह सत्ता के ऊपरी हिस्से में फैले गहरे भ्रष्टाचार का प्रतीक है? अब जब यह घोटाला पूरी तरह से उजागर हो चुका है, तो लैलूंगा की जनता सिर्फ न्याय की मांग कर रही है। क्या सरकार अब भी घोटालेबाजों को बचाएगी, या इसे कानूनी शिकंजे में कसने का वक्त आ चुका है?