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वेदांता बालको को आबंटित कोल ब्लॉक का ग्रामीण कर रहे खुलकर विरोध… जन समस्या निवारण में नहीं सुनी गई ग्रामीणों की शिकायत… बर्रा के ग्रामीणों ने मीडिया के सामने सुनाई अपनी आपबीती.. सरपंच ने कहा प्रशासन अभी भी सचेत हो जाये नहीं तो हो सकता है बालौदाबाजार कांड जैस घटना.. मर जाएंगे, मिट जाएंगे, कुर्बान हो जाएंगे लेकिन हम अपने बरगढ़ खोला का अस्तित्व मिटने नहीं देंगे …

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जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़।
रायगढ़ जिले के खरसिया विकासखंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम बर्रा के ग्रामीणों ने कुड़ेकेला में लगे जिला स्तरीय जन समस्या निवारण शिविर में पहुंच अपनी आप बीती सुनाई। पर हैरानी की बात यह है कि शिविर में समस्याओं का निराकरण करने आए जिला सीईओ जितेंद्र यादव ने उन्हें यह कहते जिले में आने को कह दिया की यह जिला स्तरीय जन समस्या निवारण शिविर धरमजयगढ़ में आयोजन हुआ है इसीलिए यहां धरमजयगढ़ के लोगों का समस्या सुनी जाएगी। जैसे ही यह बात बर्रा के ग्रामीणों ने सुनी ग्रामीण मौके पर ही सीईओ के बात से नाखुश नजर आए। ग्रामीणों का कहना था कि जब शिविर जिला स्तरीय जन समस्या निवारण के लिए आयोजन किया गया है तब हम भी इसी जिले के है तो हम कहां जाए। ग्रामीणों ने बताया की इससे पहले भी उनके द्वारा रायगढ़ कलेक्टर और मुरा शिविर में इस मामले को लेकर शिकायत की जा चुकी है पर अब तक उनकी समस्या का कोई निराकरण नहीं हुआ। मामले की विस्तृत जानकारी यह है कि ग्रामीणों के बातये अनुसार कोयला मंत्रालय भारत सरकार द्वारा बरगढ़ खोला वनांचल आदिवासी क्षेत्र को बर्रा कोल ब्लॉक के नाम से वेदांता कंपनी बालको को आवंटित किए जाने के कारण आदिवासी खोला क्षेत्र के सबसे बड़ी जनसंख्या व घनी आदिवासी आबादी वाले गांव जोबी बर्रा सहित कुरु, नगोई, बगझर, करुवाडीह, पुछियापाली, काफरमार सहित 12 गावों का अस्तित्व नक्शे से मिट जाएगा, जिससे बरगढ़ खोला आदिवासी क्षेत्र के 16 ग्राम पंचायतों के 28 गांवों के लगभग 40 हजार से भी ज्यादा लोग बेघर हो जाएंगे, इस घनी आबादी के सामने रहन- सहन, जीवन यापन और बसावट की गंभीर व विक्राल समस्या उत्पन्न होगी। इस कोल ब्लॉक आवंटन से हम आदिवासियों की सस्कृति, हमारी बोली, हमारी परपराओं एवं पूर्वजों के धरोहरों तथा स्वयं हम आदिवासियों का अस्तित्व एवं हमारी आने वाली पीढिय़ों की सुरक्षित भविष्य का विनाश हो जाएगा। इसके अलावा हमारे वन्य जीव, पेड़ पौधे, हमारे पर्वत पहाड़ व वन्य जीवन का उन्मूलन होकर पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अपने घर, अपने जमीन से बेघर होने का तथा अपने स्वजनों से बिछडऩे का दर्द कितना भयकर कष्टकारी और हृदय विदारक होता है। हम आदिवासी कब तक झोलते रहेंगे। मर जाएंगे, मिट जाएंगे कुर्बान हो जाएंगे लेकिन हम अपने आदिवासी वनांचल क्षेत्र बरगढ़ खोला का अस्तित्व हर हालत में मिटने नहीं देंगे। अगर उनकी समस्याओं का जल्द से जल्द निवारण नहीं होता तब की स्थिति में वह आंदोलन करेंगें।

क्या कहते की सरपंच

जब इस मामले पर शिविर में आवेदन देने आए ग्राम पंचायत बर्रा की सरपंच से बात की गई तब उन्होंने साफ-साफ कह दिया की जिला स्तरीय जन समस्या निवारण शिविर में उनकी समस्या नहीं सुनी गई। वह लोग लगभग 4 महीनों से अपनी मांगों को लेकर भटक रहे हैं और अगर उनकी मांग पूरी नहीं होती तब बलोदा जैसे घटना को भी अंजाम दिया जा सकता है।

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