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ये डीबीएल की जागीर है, जहां अराजकता का कानून चलता है! …      पत्थर खदान के लिए  सरेआम घसीटे जा रहे नियम कायदे 

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जोहार छत्तीसगढ़ – धरमजयगढ़। 

सरकारी पारदर्शिता के तमाम दावों के बीच क्षेत्र में निजी कंपनियों द्वारा जनहित के आड़ में नियमों की बखिया उधेड़ने का सिलसिला जारी है। ऐसे मामले में जिम्मेदारों की अनदेखी तानाशाही रवैये को शह देती नजर आ रही है जिसके दम पर कंपनी का ऐसा जंगल राज चल रहा है जो बताता है कि यह रसूखदारों की सल्तनत है और यहां उनका कानून चलता है।    धरमजयगढ़ के सेमीपाली इलाके में डीबीएल कंपनी द्वारा कुछ इसी तरह का कारनामा किया जा रहा है। संबंधित क्षेत्र में कंपनी का क्रशर उद्योग प्रस्तावित है। जिसके लिए आवश्यक विभागीय प्रक्रिया के तहत जमीन लीज पर ली गई है। अब वहां पर लगे पेड़ों को कंपनी द्वारा धड़ल्ले से काटा जा रहा है। जबकि इस पेड़ कटाई के बारे में जिम्मेदारों को कोई भी जानकारी नहीं है।

वर्तमान में वहां प्राकृतिक रूप से लगे फलदार व अन्य बहुमूल्य  प्रजाति के कई पेड़ों को काट दिया गया है। फील्ड में मौजूद गांव के एक एक बुजुर्ग ने बताया कि जिन लोगों द्वारा पत्थर खदान के लिए जमीन ली गई है उन्होंने ही पेड़ों की कटाई की है। जंगल की इस अंधाधुन कटाई पर गुस्सा जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि यहां की स्थिति देखने के लिए कभी भी कोई जिम्मेदार व्यक्ति वहां नहीं आता है। उन्होंने कहा कि पहले वन विभाग के नाका कभीकभार आ भी जाते थे लेकिन अब जो बीट गार्ड आए हैं वे उधर झांकने भी नहीं आते हैं। ग्रामीण ने बताया कि पेड़ों की कटाई के लिए अत्याधुनिक तकनीक का सहारा लिया जाता है और देखते ही देखते वर्षों पुराने पेड़ों की बलि चढ़ जाती है। इस मामले पर वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक प्रभावित क्षेत्र में करीब 5 सौ से अधिक पेड़ों की गणना की गई है। पेड़ों की कटाई के बारे में इसके आगे की अनिवार्य प्रक्रिया के पालन को लेकर संशय की स्थिति है। मतलब पेड़ों की कटाई के लिए जरूरी नियम के पालन बिना ही पेड़ों को काटा जा रहा है जो दबंगई का एक छोटा सा नमूना है।   

     बता दें कि इससे पूर्व भी भारतमाता प्रोजेक्ट में प्रभावित निजी जमीनों पर काटे गए पेड़ों के गायब होने का मामला सामने आया था जिस पर स्थानीय प्रशासन ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। वहीं, संबंधित कंपनी के एक कारिंदे ने मामले पर तब कहा था कि लकड़ियों पर कंपनी का अधिकार है। इस पूरे मामले पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि धरमजयगढ़ से कापू मार्ग उन्नयन के लिए निजी जमीनों पर स्थित पेड़ों को काटे जाने व उन लकड़ियों का अधिपत्य निर्धारित करने से लेकर जिन प्रक्रियाओं का पालन किया गया, उन नियमों का पालन इस मामले पर क्यों नहीं किया जा रहा है।  सैकड़ों हजारों पेड़ों की इस बेतरतीब और नियम विपरीत कटाई को लेकर राजस्व और वन विभाग के अधिकारियों की ओर से स्पष्ट रूप से। ऐसी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई है जिससे पता चल सके कि इन पेड़ों को किन नियमों के तहत काटा जाएगा और उन लकड़ियों के परिवहन की प्रक्रिया व उनसे मिलने वाले राजस्व पर अधिकार को लेकर अपनाई जाने वाली विधिवत प्रक्रिया क्या होगी। तो इस तरह डीबीएल की दबंगई के आगे प्रशासन एक बार फिर नतमस्तक नजर आ रहा है।

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