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क्यों नहीं बन सकता धरमजयगढ़ जिला? जनता और जनप्रतिनिधि है मौन

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जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़।
छत्तीसगढ़ अपने युवा अवस्था पर है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने छत्तीसगढ़ की सौगात दी है। जो 1 नवम्बर 2000 को अपनी अस्तित्व में आया था। जब छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना तब मात्र 16 जिले थे।जो बढ़ते बढ़ते 32 हो गए हैं। इक्कीस वर्ष में कुछ बढ़ा न बढ़ा लेकिन जिलों की संख्या दोगुनी जरूर हो गई। भाजपा शासन काल में 16 से 27 हुआ था। अब कांग्रेस सरकार उसे 32 कर दिया है। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बयानबाजी से लग रहा है 32 से 36 होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। लेकिन इस जिले बनने की दौड़ में धरमजयगढ़ सबसे पीछे चल रहा है। बना तो ठीक न बना तो भी ठीक। क्योंकि यहां के जनप्रतिनिधियों को जिला बनने से कोई लेना देना नहीं है। वहीं आमजनता भी जिला की मांग को लेकर किसी प्रकार की कोई आवाज नहीं उठा रही है। अविभाजित मध्यप्रदेश में धरमजयगढ़ जिला तो नहीं था लेकिन जिले से कम भी नहीं लगता था। पूर्व में यहां जिला स्तरीय अनेक कार्यालय हुआ करते थे, जो अब नहीं है। धरमजयगढ़ की एकमात्र पहचान बचा डाइट वो भी जाने की तैयारी में है। जो अभी जैसे तैसे करके रुका है। अविभाजित रायगढ़, जशपुर जिले में केंद्र रहा धरमजयगढ़ तहसील अब अपनी बदहाली का आंसू बहा रहा है। अब जबकि छोटे छोटे जगहों को जिला बना दिया जा रहा है, ऐसे में धरमजयगढ़ सभी दृष्टिकोण से जिला बनने लायक है। लेकिन जिले की मांग को लेकर कोई भी पार्टी, जनप्रतिनिधि व संगठन सामने नहीं आ रहे हंै। जबकि पत्थलगांव को आगामी जिले के रूप में देखा जा रहा है। यदि पत्थलगांव को जिला बनाकर धरमजयगढ़ को उसमें शामिल किया जाता है तो यह यहां के जनप्रतिनिधियों की नाकामी होगी। धरमजयगढ़ के अंतिम छोर में बसे ग्रामवासियों को डेढ़ सौ किलोमीटर दूरी तय कर जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। शासकीय कार्यों के लिए एक दिन में जाना आना नामुमकिन हो जाता है।

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