पेरिस । फ्रांस में सफेद ग्लेशियरों पर खून जैसे लाल धब्बों को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही है। इन लाल धब्बों ने सभी को हैरत में डाल दिया है। हालांकि, वैज्ञानिकों कहना है कि इसे विज्ञान की भाषा में ‘ग्लेशियर का खून’ कहा जाता है और इसकी सच्चाई का पता लगाने के लिए एक प्रोजेक्ट भी शुरू किया गया है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांस के एल्प्स पहाड़ों पर जमा ग्लेशियरों की जांच के लिए एल्पएल्गा प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई है। इसके तहत 3,280 फीट से लेकर 9,842 फीट की ऊंचाई तक जमा ग्लेशियरों से निकलने वाले खून की जांच की जाएगी। अभी तक जिन ग्लेशियरों की जांच की गई है, उनके नतीजे हैरान करने वाले हैं। क्योंकि जिस जीव की वजह से ग्लेशियर पर लाल धब्बे बने हैं, वह आमतौर पर सागरों, नदियों और झीलों में रहता है। अचानक उसका पानी की गहराइयों से निकलकर जमा देने वाले ग्लेशियरों पर आना कई सवाल खड़े करता है। एल्पएल्गा प्रोजेक्ट के कॉर्डिनेटर एरिक मर्शाल ने बताया कि यह खास प्रकार की माइक्रोएल्गी है। जो ग्लेशियर में पनप रही है। पानी में रहने वाली यह एल्गी पहाड़ों के सर्द मौसम से जब रिएक्ट करती है तो यह लाल रंग छोड़ती है, जिसकी वजह से कई किलोमीटर तक ग्लेशियर लाल दिखने लगता है।
उन्होंने कहा कि क्योंकि ये माइक्रोएल्गी पर्यावरण परिवर्तन और प्रदूषण को बर्दाश्त नहीं कर पाती। नतीजतन इसके शरीर में रिएक्शन होता है और बर्फ लाल रंग होने लगती है। एरिक ने बताया कि आमतौर पर एल्गी सागरों, नदियों और झीलों में मिलती हैं, लेकिन अब माइक्रोएल्गी बर्फ और हवा के कणों के साथ उड़कर ग्लेशियरों तक जा पहुंचे हैं। कुछ तो काफी ज्यादा ऊंचाई वाले स्थानों तक पहुंच गए हैं। एरिक के अनुसार, आमतौर पर माइक्रोएल्गी की कोशिकाएं एक इंच का कुछ हजारवां हिस्सा होती हैं। लेकिन जब यह एक साथ जमा होती हैं तो पूरी कॉलोनी बना लेती हैं। उन्होंने आगे कहा कि फ्रेंच एल्प्स पहाड़ों पर मौजूद ग्लेशियरों को लाल करने वाली एल्गी टेक्नीकली हरी एल्गी है, जिसका फाइलम क्लोरोफाइटा है। लेकिन इनमें कुछ खास तरह के क्लोरोफिल होते हैं, जो नारंगी या लाल रंग का पिगमेंट बनाते हैं।
एरिक मर्शाल ने बताया कि जब एल्गी ब्लूम होता है यानी एल्गी तेजी से फैलती है तब उसके आसपास की बर्फ नारंगी या लाल रंग की दिखने लगती है। ऐसा कैरोटिनॉयड्स की वजह से होता है। ऐसा लगता है कि पूरे ग्लेशियर पर खूनी जंग छिड़ी हुई हो। एरिक के मुताबिक, उन्होंने आखिरी बार इस ग्लेशियरों को साल 2019 के बंसत ऋतु में देखा था। तब वहां पर कई किलोमीटर दूर तक ग्लेशियर लाल रंग का दिख रहा था। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों ने यह तो पता कर लिया है कि ग्लेशियर लाल कैसे हो जाते हैं, लेकिन सबसे बड़ा मुद्दा ये है कि वैज्ञानिकों को इस एल्गी की बायोलॉजी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता। यह भी नहीं पता कि पहाड़ों के इकोसिस्टम पर यह कैसे पनप रही हैं।