बिलासपुर । बच्चों को उचित शिक्षा देकर जीवन में कामयाब इंसान बनाना अभिभावकों का कर्तव्य भी है और जिम्मेदारी भी। लेकिन एक सवाल यक्ष प्रश्न की तरह मुंह बाए खड़ा है कि क्या लक दक कोचिंग इंस्टीट्यूट भेजे बिना बच्चों का भविष्य गढऩा मुश्किल या नितांत असंभव है।
अब आप सोंच रहे होंगे कि अचानक ये सवाल क्यों? तो साहेबान एक कोचिंग इंस्टीट्यूट के 1 करोड़ डॉलर मतलब 7500 करोड़ में हुए सौदे ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। क्या एक कोचिंग इंस्टी्यूट को इतनी ऊंची कीमत देकर खरीदा जा सकता है। तो जवाब है हां। आकाश इंस्टीट्यूट को एक चीनी कंपनी बाएजूज ने खरीदा है।
कभी ट्यूशन लेना शर्म की बात
अगर 90 के दशक की बात करें तो ट्यूशन लेना शिक्षकों के लिए अच्छी बात नहीं मानी जाती थी। वैसे शिक्षकों को समाज अच्छी नजऱों से नहीं देखता था। अरे फलां सर तो ट्यूशन लेते हैं। मानो व्यापार सरीखा समझा जाता था। लेकिन 3 दशक में ही मान्यताएं बदल गई। अब बड़े संस्थान में ट्यूशन लेना स्टेटस सिंबल हो गया है। अभिभाभक जी – जान और जीवन भर की जमा पूंजी लुटाने को बेताब हैं।
बड़े संस्थान में शिक्षा सफलता की गारंटी नहीं
दुनिया के सर्वे रिपोर्ट को छोड़ें, शहर का ही आंकड़ा के तो प्रोफ़ेशनल कोर्स में इन कोचिंग इंस्टीट्यूट की सफलता का आंकड़ा 10 प्रतिशत से अधिक नहीं है। लेकिन बावजूद इसके यहां कोचिंग दिलाना अभिभावकों की मज़बूरी है या मानसिकता। आकलन मुश्किल है। कैलकुलेटिव सेल्फ स्टडी का कोई जवाब ना था और ना है।