जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़। रायगढ़ जिले के सुदूर आदिवासी एवं वनांचल क्षेत्र धरमजयगढ़ के ग्राम ढोढ़ागांव को एक मुहल्ला आता है, सलिहापारा जहाँ पर आजादी को 75 साल बाद भी आंगनबाड़ी के बच्चों को एक छत तक नहीं मिल सका। भवन के अभाव में बच्चों को एक दूसरे के घर के परछी में बैठना पड़ रहा है। आंगनबाड़ी केन्द्र सलिहापारा ढोढ़ागांव के नन्हे मुन्ने मासूम बच्चे सत्ता परिवर्तन के बाद व्यवस्था परिवर्तन की दंश झेल रहे हैं। जबकि छत्तीसगढ़ कि भूपेश बघेल सरकार खाली ढ़पली पीट – पीटकर विकास कि राग अलापने में लगी हुई है। वहीं एक ओर मासूम बच्चों को एक छोटा सा आंगनबाड़ी भवन भी मुनासिब नहीं हो पा रहा है। धरमजयगढ़ ब्लॉक का यह ढोढ़ागांव नामक गांव चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है। जहां दूसरे के घर के परछी में आंगनबाड़ी संचालित होता है। रायगढ़ जिले के विकास खण्ड धरमजयगढ़ के महिला एवं बाल विकास परियोजना कापू के अंतर्गत आदिवासी व वनांचल क्षेत्र में चल रहे आंगनबाड़ी के मीनी केन्द्र जो कि महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित मीनी आंगनबाड़ी केन्द्र ढोढ़़ागांव में इन दिनों आंगनबाड़ी भवन के अभाव में पराये के घर के बरामदे में संचालित किया जा रहा है। वहीं शासन – प्रशासन द्वारा नवनिहालों के बेहतर शिक्षा व्यवस्था कि लाख दावे किए जाते रहे हैं, जहाँ शासन द्वारा व्यवस्था परिवर्तन करने कि बात खोखले ही साबित हो रहे हैं। आंगबाड़ी जैसे एक छोटे से भवन कि शासन से व्यवस्था के लिए नवनिहालों को डिजिटल युग में भी एक छत तक उपलब्ध नहीं होना आखिर किसकी मजबूरी है? इन व्यवस्था को देखते आप सहज ही अंदाज़ा लगा सकते हैं, कि छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन होने के बाद भी व्यवस्था परिवर्तन होने में और कितना वक्त लग सकता है। आखिर विकास कहां हुआ है। क्यों न शासन – प्रशासन विकास कि लाख ढोल पीटते हों मगर ग्रामीण क्षेत्रों के आंगनबाड़ी केन्द्र कि क्या दुर्दशा है। आप खुद समझ सकते हैं, आप ही बताइये इसके लिए कौन जिम्मेदार है? भला उन मासूम जिन्दगी कि क्या कसूर कि आज ए बी सी डी तक जिन्हें मालूम नहीं वे क्या भी कर सकते हैं।