संजीव वर्मा
आखिरकार अमेठी और रायबरेली सीट से उम्मीदवारी को लेकर पिछले कुछ दिनों से जारी उहापोह और रहस्य का अंत हो गया। कांग्रेस हाईकमान ने राहुल गांधी को रायबरेली और के.एल. शर्मा को अमेठी से प्रत्याशी घोषित कर रणनीतिक रूप से सत्तारूढ़ पार्टी की अब तक की तैयारी को विफल करते हुए नए सिरे से मुकाबले में आने मजबूर कर दिया है। अब तक सत्तारूढ़ दल यानी भाजपा यही मानकर चल रही थी कि राहुल अमेठी और प्रियंका रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी और इसी के अनुरूप वह तैयारी भी की थी। लेकिन येन वक्त पर कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल दी और राहुल को रायबरेली का रास्ता पकड़ा दिया। कांग्रेस के इस दांव से भाजपा हतप्रभ है। अब इस बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कांग्रेस की रणनीति क्या है। क्यों राहुल गांधी को अमेठी छोड़कर मां की विरासत की सियासत को संभालना पड़ा। हमारा मानना है कि कांग्रेस ने ऐसा कदम उठाकर बड़ा और सुरक्षित दांव खेला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी कांग्रेस की इस रणनीति पर कटाक्ष करना पड़ा। उन्होंने कहा कि डरो मत! भागो मत! दरअसल, राहुल के रायबरेली से लडऩे के कई मायने हैं। इसके जरिए उन्होंने एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। इससे इंडिया गठबंधन के पक्ष में भी एक संदेश गया है। अगर राहुल गांधी उत्तर प्रदेश से चुनाव नहीं लड़ते तो पूरे हिंदी भाषी राज्यों में इंडिया गठबंधन के कमजोर होने का सियासी संदेश जाता, क्योंकि अभी भी चुनाव के पूरे चार चरण बाकी हैं। उत्तर प्रदेश में ही इंडिया गठबंधन के प्रमुख भागीदार सपा प्रमुख अखिलेश यादव लगातार राहुल गांधी पर दबाव बना रहे थे कि गांधी परिवार का सदस्य खासकर वे स्वयं इन दोनों सीटों यानी रायबरेली या अमेठी में से किसी एक पर जरूर लड़ें। अब जबकि राहुल गांधी ने रायबरेली से नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है तो इंडिया गठबंधन में भी अच्छा खासा उत्साह देखा जा रहा है। उधर, अमेठी में भले ही केएल शर्मा कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं, लेकिन हकीकत यही है कि यहां भी प्रतिष्ठा गांधी परिवार की ही दांव पर लगी हुई है। कांग्रेस ने शर्मा को आगे कर स्मृति ईरानी से एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है। दरअसल ईरानी की राजनीति में एक पहचान और दबदबे का एक पहलू यह भी है कि उन्होंने गांधी के गढ़ अमेठी में जाकर राहुल गांधी को हराया है। दूसरी बात यह है कि जब भी मौका मिला वह राहुल गांधी पर हमला करती रही हैं, लेकिन अब उन्हें इसका मौका नहीं मिलेगा। कांग्रेस ने के.एल.शर्मा जैसे सामान्य पार्टी कार्यकर्ता को आगे कर उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है, क्योंकि प्रत्याशी शर्मा जरूर हैं, लेकिन चुनाव में मोर्चा तो गांधी परिवार ही संभालेगा। खासकर चुनाव की कमान प्रियंका गांधी के हाथों होगी। यदि स्मृति ईरानी चुनाव जीतती है तो वह इसे अपनी बड़ी उपलब्धि नहीं बता सकेंगी और यदि परिणाम उलट हुए तो कांग्रेस कहेगी उसने पिछली बार का हिसाब चुकता कर दिया। यानी पार्टी ने काफ ी सोच समझकर ऐसी गुगली फेंकी है कि भाजपा चारों खाने चित होती दिख रही है। हालांकि स्मृति ईरानी ने यह कहकर अपने आपको संतुष्ट करने का प्रयास किया है कि अमेठी के चुनाव मैदान में गांधी परिवार के किसी सदस्य का नहीं होना यह संकेत है कि कांग्रेस ने मतदान के पहले ही अपनी हार स्वीकार कर ली है। बहरहाल, रायबरेली और अमेठी दोनों ही गांधी परिवार की परंपरागत सीट रही है। राहुल गांधी ने कहा है कि मेरी मां ने मुझे बड़े भरोसे के साथ परिवार की कर्म भूमि सौंपी है। उसकी सेवा का मौका दिया है। उन्होंने कहा कि अमेठी और रायबरेली मेरे लिए अलग नहीं है। दोनों ही मेरा परिवार है। खुशी है कि 40 वर्षों से क्षेत्र की सेवा कर रहे शर्मा अमेठी से पार्टी का प्रतिनिधित्व करेंगे। अमेठी राजीव गांधी और संजय गांधी की भी कर्म स्थली रही है। लेकिन 2019 में स्मृति ईरानी से हार के बाद राहुल का अमेठी से लगाव थोड़ा कम हुआ है। लेकिन पिता और चाचा की यादों को समेटे होने व पुराने रिश्ते को अटूट बनाए रखने के लिए परिवार के भरोसेमंद शर्मा को मैदान में उतारकर जनता को अपना भरोसा मजबूत करने का एक अवसर दिया है। वैसे भी रायबरेली की सलोन तहसील का एक हिस्सा अमेठी में है। ऐसे में राहुल का अमेठी से रिश्ता बना रहेगा।