नई दिल्ली। छोटे दलों से गठबंधन कर उत्तर प्रदेश की चुनावी वैतरणी पार करने का मंसूबा पाले समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के समक्ष सीटों का बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। क्षेत्रीय दलों की अधिक से अधिक सीटे हासिल करने की लालसा उनकी रणनीति की सफलता में सबसे बड़ा पेच है। उधर, पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के यूपी की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा ने पार्टी के रणनीतिकारों को इस दिशा में सोचने पर मजबूर कर दिया है। विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ ही उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस सहित दूसरे क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की गतिविधियां तेज हो गई है। इसी क्रम में सपा के नेता एक सितंबर से प्रदेश में जनादेश यात्रा निकाल कर मतदाताओं की मूड भांपने की कोशिशों में जुट गए हैं। पार्टी रणनीतिकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन मजबूत करने के साथ क्षेत्रीय दलों को साधा जा रहा है, जिससे उनके साथ गठबंधन कर भाजपा को कड़ी टक्कर दी जा सके। हालांकि, सपा अभी तक राष्ट्रीय लोकदल व महान दल के अलावा किसी और दल को साथ लेकर चुनाव की रणनीति पर अंतिम रूप नहीं ले पाई है, लेकिन अखिलेश यादव को भरोसा है कि अधिक से अधिक छोटे दलों को साथ लेकर चुनाव लड़ेंगे। इन दलों में उनके चाचा शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी भी है, लेकिन शिवपाल की पार्टी कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी यह तय नहीं हुआ है। वहीं अपना दल कृष्णा पटेल गुट भी सपा के साथ मिलकर चुनाव तो लड़ना चाहता है लेकिन सीट बंटवारे के फॉर्मूले को लेकर तकरार है। इसके अलावा पीस पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे दल भी सपा के साथ मिलकर चुनाव तो लड़ना चाहते हैं लेकिन उनकी मांग भी कई सीटों को लेकर है। सपा सूत्रों के मुताबिक, आम आदमी पार्टी भी समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहती है लेकिन उनकी सीटों की मांग कुछ ज्यादा है। आम आदमी पार्टी के सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद सपा सकते में है। सपा की उत्तर प्रदेश पर विजय हासिल करने के लिए क्षेत्रीय दलों के महागठबंधन की रणनीति कितनी सफल होगी, यह आने वाला वक्त बताएगा।