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इक्कीसवीं सदी के भारत में एक ऐसा गांव जहां नहीं है बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा की सुविधा … नरकीय जीवन जीने को मजबूर सिरडाही के लोग

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जोहार छत्तीसगढ़-धरमजयगढ़।
एक ओर लोग चांद पर घर बनाने की कल्पना कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ  एक ऐसा गांव जहां आज भी भौतिक सुख सुविधा नहीं मिल रहा है। हम चाहे कितना भी विकास की बातें करें लेकिन उस गांव को देखकर सब बेकार है। धरमजयगढ़ विकासखंड के अंतिम छोर में बसा यह गांव आज भी बिजली पानी सड़क शिक्षा चिकित्सा सेवा से वंचित है। ग्राम पंचायत क्रिन्धा का आश्रित गांव सिरडाही जहां राष्ट्रपति के दत्तकपुत्र कहलाने वाले कोरवा जनजाति, यादव व ईसाई समुदाय के लोग निवासरत हैं। जहां आज भी किसी प्रकार की सुख सुविधा नहीं है। या यूं कहें यहां के लोग आज भी नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

स्कूल भवन में छत नहीं, कमरे में उग आए पौधे:- सरकार शिक्षा के क्षेत्र में अनेक पहल कर रही है। वहीं कई योजना लागू की गई है। केंद्र सरकार व राज्य सरकार शिक्षा को लेकर अलग-अलग योजना चलाई जा रही है। लेकिन इस गांव शिक्षा सुविधा शून्य है। गांव में स्कूल भवन तो बना है शिक्षक की नियुक्ति भी हुई है। लेकिन स्कूल भवन में छत नहीं है वहीं कमरे में पौधे उग आए हैं, शिक्षक का दर्शन दुर्लभ है।

ढोढ़ी का पानी पीने को हैं मजबूर, नहीं है गांव में हैंडपंप:- जहां लोग बोतल बंद व आरओ का पानी पी रहे हैं। जगह-जगह पानी टंकी बना है, घर-घर नल कनेक्शन लगा है। लेकिन सिरडाही गांव के लोग ढोढ़ी का पानी पीने को मजबूर हैं। इस गांव में एक भी हैंडपंप नहीं है। इसलिए ढोढ़ी का पानी पीकर जीवन यापन कर रहे हैं। बरसात के दिनों में पानी गन्दा हो जाता है। पीने योग्य नहीं रहता लेकिन क्या करें उसी को पीना पड़ता है। जिससे बीमार पडऩे की सम्भावना बनी रहती है। ढोढ़ी मतलब तीन चार फीट खोदा हुआ गड्ढा जिसमें पानी जमा रहता है।

बिजली नहीं होने से रात को जलाते हैं दीया:- बिजली की चकाचौंध में पूरी दुनिया जगमगा रहा है। लेकिन इस गांव वालों के लिए बिजली कोरी कल्पना मात्र है। आज बिजली के बिना कुछ भी कार्य असम्भव हो गया है। लेकिन इस गांव में अभी तक बिजली सुविधा नहीं पहुंची है। कुछ साल पहले शासन द्वारा सौर ऊर्जा प्लेट दी गई थी। लेकिन बरसात के दिनों में मौसम खराब होने के कारण उसमें भी बल्ब नहीं जलता। रात को उजाला करने के लिए मिट्टी तेल का दीया जलाते हैं। जंगलों से घिरे इस गांव में छोटे-छोटे जहरीले जीव जंतु से खतरा बना रहता है। वहीं जंगली हाथी भी नुकसान पहुंचाया जाता है।

आने जाने के लिए नहीं है सड़क, पगडण्डी से ही होता है आनाजाना:- पूरे देश में सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। लेकिन सिरडाही गांव के लोग आज भी पगडण्डी में पैदल आनाजाना करते हैं। यहां के ग्रामीणों को अपनी पंचायत मुख्यालय जाने के लिए पगडण्डी के रास्ते छ: सात किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। बरसात के दिनों में पहाड़ के ऊपर बने पगडण्डी में फिसलन होने से डर बना रहता है, लेकिन दूसरा कोई विकल्प नहीं है। शासन द्वारा मिलने वाले राशन को सिर में ढो कर पैदल लेकर जाते हैं। ज्यादा शासन होने पर दो तीन बार लेकर जाना पड़ता है।

प्राथमिक चिकित्सा के लिए भी जाना पड़ता है कोसों दूर:- यदि इस गांव में किसी को प्राथमिक उपचार की जरूरत पड़ गई तो कई किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल जाना पड़ता है। कोई ज्यादा बीमार पड़ गया तो उसे चारपाई में ढोकर अस्पताल पहुंचाया जाता है।

विकास से कोसों दूर इस गांव पर कब पड़ेगी शासन प्रशासन की नजर:- कब इस गांव में शासन की नजर जाएगी तो ग्रामीणों को आधुनिक सुख सुविधा मिल सके। बताते हैं कि आज तक इस गांव में कोई बड़ा अधिकारी नहीं पहुंचा है। वहीं एक-एक वोट की तरसने वाले नेताओं का भी इस गांव में पदार्पण नहीं हुआ है। क्योंकि इस गांव तक जाने की सुविधा ही नहीं है। यदि जाना है तो पगडण्डी के सहारे कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा। एसी कार में बैठे नेता अधिकारियों की कब इस गांव पर नजर पड़ेगी। और कब सुख सुविधा पहुंचेगी यह तो बता पाना मुश्किल है। बड़ी ही बिडम्बना है कि इक्कीसवीं सदी में भी इस तरह जीवन जीने को मजबूर हैं।

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