कोरबा छत्तीसगढ़ सरकार ने लेमरू हाथी प्रोजेक्ट के माध्यम से हसदेव अरण्य के घने जंगलों को बचाने का वादा किया था। बावजूद इसके वन विभाग ने लेमरू प्रोजेक्ट के एरिया में आने वाले परसा कोल ब्लाक में परियोजना स्थापित करने की अनुमति दे दी है। इस कोल ब्लाक की पर्यावरण और वन स्वीकृति को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौती दी गई है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि हसदेव अरण्य जैसे समृद्ध वन क्षेत्र को बचाने और ग्राम सभाओं के निर्णय का विपक्ष में रहकर समर्थन देने के आपने वादे से राज्य सरकार मुकरती दिख रही है। इन खनन परियोजनाओं के खिलाफ पिछले एक दशक से ग्रामीण आदिवासी और उनकी ग्राम सभाएं आंदोलनरत हैं। श्री शुक्ला ने कहा कि इसकी पर्यावरण स्वीकृति पूर्ण रूप से गलत जानकारियों पर हासिल की गई थी। साथ ही वन स्वीकृति भी वनाधिकार मान्यता कानून का उल्लंघन कर फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई थी। इसकी जांच और शिकायत के लिए ग्रामीणों ने कुछ दिनों पूर्व भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ज्ञापन सौंपा था।
श्री शुक्ला ने कहा कि परसा कोल ब्लाक का भूमि अधिग्रहण भी ग्राम सभाओं की सहमति के बिना कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत किया गया है, जिस पर हाल ही में हाईकोर्ट ने संबंधित पक्ष को नोटिस जारी किया है। गैरकानूनी और गलत तरीके से हासिल की गई स्वीकृति और व्यापक विरोध के बाबजूद भी पर्यावरण विभाग से यह अनुमति जारी करना समझ से परे है।
अब शासन को यह तय करना हैं की छत्तीसगढ़ की सम्पदा पूर्ण धरती की कोख बचानी हैं या वन्य प्राणियों की रक्षा के नाम पर भारी भरकम राशि की सामूहिक लूट जारी रखनी हैं।