भोपाल । कोरोना कर्फ्यू के कारण पालतू जानवरों की भी भारी फजीहत हो रही है। लॉकडाउन के कारण पालतू जानवरों के लिए पैकेज्ड फूड और दवाएं उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि बाजार बंद हैं। इसके अतिरिक्त मांस और चिकन की दुकानें भी बंद हैं जिससे मांसाहारी भोजन से पालतू जानवर वंचित हैं। पशु चिकित्सक भी सुलभ नहीं हैं। मालिकों ने लॉकडाउन की बंदिश के चलते उन्हें बाहर निकालना कम कर दिया है। इस कारण पशुओं में चिड़चिड़ापन, अवसाद, मोटापा, नींद न आने जैसी समस्या हो रही हैं। सामाजिक कार्यकर्ता शिबानी शर्मा ने बताया कि हमारे पास डेढ़ साल की बिल्ली रेमो है। वह एक महीने से हमारे साथ थी। लॉकडाउन से पहले वह काफी स्वतंत्र थी। लेकिन अब वह हमारे पास आती है और हमारा ध्यान खींचने की कोशिश करती है। उचित आहार नहीं ले रही है और चिड़चिड़ी हो गई है। पहले हम उसे मेडिकेटेड कैट फूड का एक विशेष ब्रांड देते थे, लेकिन अब यह उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में हम उसे जो खिला रहे हैं, उसे वह पसंद नहीं है। हम उसे अस्पताल नहीं ले जा सकते, क्योंकि डॉक्टर पालतू जानवरों की जांच करने से इनकार कर रहे हैं। फोन पर डॉक्टर की सलाह लेने के बाद मैंने उसे ओआरएस दिया। हमने बिल्लियों की देखभाल करने के तरीके जानने के लिए कुछ साइटें भी देखी हैं। पहले हम उसे दिन में चार बार बाहर निकालते थे, लेकिन अब केवल एक या दो बार निकाल रहे हैं।पद्मनाभ नगर निवासी विद्यार्थी दर्शन वर्मा ने बताया कि मेरे पास एक लैब्राडोर श्वान है, जिसका नाम मैगी है। इन दिनों वह क्रोधित और उदास रहता है। मैं उसे रोज टहलाने और रविवार को लंबी सैर पर ले जाता था। लेकिन अब वह घर के चारों ओर कम पैदल चल पाता है। व्यायाम की कमी के कारण उसका आहार भी कम हो गया है। वह गली के श्वानों को देखकर भौंकता है। जिन दवाओं की उसे जरूरत है वे उपलब्ध नहीं हैं। उसे टीका लगवाने में भी समस्या आ रही है। श्वान को जो विटामिन और अन्य सप्लीमेंट खिलाते हैं, उन्हें ढूंढना भी मुश्किल है। पशु चिकित्सक उनकी जांच करने के लिए तैयार नहीं हैं। पहले मैगी को उबला हुआ चिकन और अंडा खिलाता था, लेकिन अभी मांस और चिकन की दुकानें बंद हैं। इस बारे में पशु चिकित्सक डॉ. मुकेश तिवारी का कहना है कि पालतू जानवरों को भी प्रभावित कर रहा है। वे व्यायाम कम कर रहे हैं, उन्हें बेचैनी हो सकती हैं। वैसे भी गर्मी के मौसम में कुत्तों में त्वचा में संक्रमण और भूख कम लगना आम है।