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छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन संयोजक मंडल के आलोक शुक्ला को ग्रीन नोबल पुरस्कार से किये सम्मानित

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जोहार छत्तीसगढ़-रायपुर।
पर्यावरण संबंधी विश्व के सर्वश्रेष्ठ और सु-प्रसिद्ध ग्रीन नोबेल पुरस्कार गोल्डमैन पर्यावरणीय अवॉर्ड के लिए हमारे संयोजक मंडल के साथी आलोक शुक्ला को चुना जाना, हमारे लिए गर्व और हर्ष-उत्साह की बात है। यह पुरस्कार हर वर्ष दुनिया के 6 महाद्वीपों से एक प्रतिनिधि को दिया जाता है, इस वर्ष एशिया महाद्वीप से आलोक शुक्ला को चुना गया है। पिछले 2 दशकों से छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों को बचाने, और सामाजिक न्याय के लिए तत्पर कई जन-संघर्षों में आलोक शुक्ला की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। चाहे स्पंज आयरन उद्योग के प्रदूषण के खिलाफ संघर्ष हो या ऐतिसाहिक पेंडरावन जलाशय को बचाने की लड़ाई या फि र किसान आंदोलन, इन सभी में इनका विशेष योगदान रहा है। पिछले एक दशक विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के फेफ ड़े कहे जाने वाले सघन, समृद्ध और जैव विविधता से परिपूर्ण हसदेव अरण्य वन क्षेत्र, और उससे जुड़ी आदिवासियों की आजीविका, जीवन और संस्कृति को बचाने के ऐतिहासिक संघर्ष के नेतृत्वकारी साथी हैं। इसलिए वास्तव में यह सम्मान छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण को बचाने संघर्षरत प्रत्येक आदिवासी किसान, मजदूर,महिला का सम्मान है। जिससे सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय की आवाज बुलंद करने में जनसंगठनों को मदद मिलेगी। इस अवसर पर उल्लेखनीय है कि हसदेव के आंदोलन ने लगातार कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ , शांतिपूर्ण तरीकों से, और संवैधानिक शक्तियों और कानूनी प्रावधानों का उपयोग कर अपनी आवाज बुलंद की पिछले 12 वर्षों से लगातार प्रस्तावित 23 कोयला खदानों से होने वाले विनाश के विरुद्ध, अपने जल-जंगल.जमीन को बचाने, आदिवासी समुदाय विशेष रूप से हसदेव की महिलाओं ने हर चुनौती का डट कर सामना किया और प्रत्येक खदान क्षेत्र में, प्रत्येक इंच जमीन पर और प्रत्येक पेड़ के लिए मजबूती से संघर्ष किया। उन्होंने लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं से हर संभव प्रयास किए, सारे सरकारी और राजनैतिक दरवाजे खट-खटाए, अनेकों धरना प्रदर्शन.सम्मेलन इत्यादि आयोजित किए और 300 कि. मी. लंबी रायपुर तक पदयात्रा निकाली द्य संघर्ष के इस रास्ते में हसदेव के आंदोलन को भारी जन.समर्थन भी मिला और समाज का हर वर्ग शहरी.ग्रामीण, जाति.वर्ग, देश.प्रदेश की सीमाओं के पड़े,हसदेव को बचाने की मुहीम से जुड़ा। इसी संघर्ष के कारण अक्टूबर 2021 में 1995 वर्ग कि.मी. फैला लेमरू हाथी रिजर्व की अधिसूचना हुई। इसके बाद लेमरू रिजर्व की सीमा में आने वाले 17 कोल ब्लॉक में खदान.संबंधित सभी प्रक्रियाओं पर रोक लगाई गई जिसमें यहां पूर्व.आवंटित हो चुके कोरबा जिले के पतुरिया गिद्मुड़ी एवं मदनपुर साऊथ कोल ब्लॉक भी शामिल हैं। इसके पश्चात जुलाई 2022 में छत्तीसगढ़ विधान सभा में सर्व.सम्मति से अशासकीय संकल्प भी लिया गया जिसके अनुसार सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को खनन-मुक्त रखने का निर्णय लिया गया। हालांकि हसदेव पर संकट के काले बादल अभी छंटे नहीं हैं, सरगुजा क्षेत्र में परसा और खदानों में अभी भी जंगल-कटाई और विस्थापन की कोशिश है, जिसे बचाने के लिए यहां संघर्ष अभी भी जारी है और बीते 800 दिनों से अधिक से अनिश्चित धरना-प्रदर्शन और विरोध अभी भी जारी है। निश्चित ही ग्रीन नोबेल पुरस्कार से सम्पूर्ण हसदेव क्षेत्र को बचाने की मुहीम को बाल मिलेगा और हसदेव की आवाज पूरे विश्व में बुलंद होगी। यह पुरस्कार शायद इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हसदेव के आन्दोलन ने दुनिया-भर में यह उम्मीद भी जगाई है, कि एक शोषित-वंचित वर्ग, केवल साफ नियत और लोकतान्त्रिक तरीकों से दुनिया की सबसे ताकतवर कार्पोरेट की लूट और हिंसा का, मजबूती से मुकाबला कर सकता है। वह विकास के नाम पर हो रहे विनाश को चुनौती दे सकता है छत्तीसगढ़ के परिदृश्य में हम देखते हैं कि हसदेव जैसे कई आंदोलन जगह-जगह पर लगातार जारी हैं। सरगुजा से लेके रायगढ़ जशपुर तक वन.संसाधनों को बचाने, सिलगेर से लेके बैलाडीला तक दमन और हिंसा के खिलाफ , जांजगीर चांपा धरसीवा बिलासपुर और कोरबा में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ , राजनंदगांव नया राजधानी और सम्पूर्ण मध्य छत्तीसगढ़ में किसान आंदोलन, बिलासपुर दुर्ग,भिलाई में मजदूर संघर्ष। निश्चित ही आने वाले समय में इन सभी संघर्षों को बल मिलेगा। इसी के साथ हसदेव आंदोलन और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की बात को वैश्विक स्तर पर रखने का एक सुनहरा अवसर भी है। वास्तव में आज के क्लाईमेट चेंज के दौर में यह समझना जरूरी है कि पर्यावरण और प्राकृतिक सनसाधनों को बचाने और मानव.शोषण के खिलाफ सभी संघर्ष एक दूसरे से जुड़े हैं। इसीलिए दुनिया के सभी पर्यावरणविदों, आदिवासी समुदायों, मजदूर किसान और शोषित वर्गों को इकक_ा होकर अन्याय के खिलाफ एकजुट होना होगा द्य इसी उम्मीद के साथ हम आलोक शुक्ला को ग्रीन नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि कॉर्पोरेट तथा सरकारें इससे सबक लें और केवल मुनाफे की राह छोड़ जन-समुदायों के अधिकारों और लोकतान्त्रिक व्यवस्था का सम्मान करें।
छतीसगढ़ बचाओ आंदोलन
जिला किसान संघ राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ मुक्ती मोर्ची मजदूर कार्यकर्ता समिति अखिल भारतीय आदिवासी महासभा जन स्वास्थ्य कर्मचारी यूनियन भारत जन आन्दोलन, हसदेव आरण्य बचाओ संघर्ष समिति, माटी कांकेर, अखिल भारतीय किसान सभा छग किसान संघर्ष समिति, दलित आदीवासी मंच, गांव गणराज्य अभियान, आदिवासी जन वन अधिकार मंच, सफ ाई कामगार यूनियन, मेहनतकश आवास अधिकार मंच,जशपुर जिला संघर्ष समिति, राष्ट्रीय आदिवासी विकास परिषद, जशपुर विकास समिति,रिछारिया कैम्पेन, जशपुर जिला संघर्ष समिति, राष्ट्रीय आदिवासी विकास परिषद्, जशपुर विकास समिति,रिछारिया कैम्पेन भूमि बचाओ संघर्ष समिति धर्मजयगढ़।

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