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कोरोना से जीवन की जंग हारे उड़न सिख मिल्खा सिंह, चंडीगढ़ में ली अंतिम सांस

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नई दिल्ली । देश के पहले ट्रैंक एंड फील्ड सुपर स्टार मिल्खा सिंह का चंडीगढ़ में उपचार के दौरान शुक्रवार रात 91 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। वह एक माह पहले कोरोना से संक्रमित हुए थे, जिसके बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। एक माह तक कोरोना से जूझने के बाद पद्मश्री मिल्खा सिंह अंतत: जिंदगी से जंग हार गए। उनके निधन की खबर से देश भर में शोक की लहर दौड़ गई है। मिल्खा सिंह का पूरा जीवन उपलब्धियों से भरा रहा। उनके करियर का सबसे खास लम्हा तब आया था, जब सन 1960 के रोम ओलिंपिक में वह सेकंड के 100वें हिस्से से पदक से चूक गए। मिल्खा सिंह ने सन 1956 के मेलबर्न ओलिंपिक में पहली बार हिस्सा लिया था। उस साल उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। इसके बाद के सालों में मिल्खा ने न सिर्फ खुद को निखारा बल्कि कई महत्वपूर्ण रेकॉर्ड भी अपने नाम किए। 200 मीटर और 400 मीटर के नेशनल रेकॉर्ड मिल्खा के नाम दर्ज किए गए। मिल्खा हालांकि सिर्फ रोम ओलिंपिक के कारण ही महान नहीं थे। भारतीय ट्रैक एंड फील्ड में मिल्खा सिंह ने बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं।

1958 के टोक्यो एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर में गोल्ड मेडल जीता। मेलबर्न ओलिंपिक में मिल्खा फाइनल इवेंट के लिए क्वॉलिफाइ नहीं कर पाए, लेकिन उनमें आगे बढ़ने की जबर्दस्त इच्छा थी। उस समय उनकी उम्र 27 साल थी। 400 मीटर और 4×400 मीटर रिले के गोल्ड मेडलिस्ट अमेरिकी एथलीट चार्ल्स जेनकिंस से पूछा कि वह कैसे ट्रेनिंग करते हैं। उनका रूटीन क्या है। जेनकिंस ने उन्हें प्रोत्साहित करते हुए आगे बढ़ने की तकनीक बताई। अगले दो साल उन्होंने बड़ी शिद्दत से जेनकिंस की बताई दिनचर्या का सख्ती से पालन किया। इसका उनके प्रदर्शन पर उल्लेखनीय असर पड़ा। इसके बाद मिल्खा सिंह ने 1958 के एशियन गेम्स में हिस्सा लिया और राष्ट्रीय रिकार्ड स्थापित किया। मिल्खा सिंह को 400 मीटर की दौड़ विशेष रूप से पसंद थी। यहां उन्होंने यह दूरी 47 सेकंड में पूरी कर गोल्ड मेडल हासिल किया। इस मुकाबले में सिल्वर मेडल जीतने वाले पाब्लो सोमब्लिंगो से करीब दो सेकंड कम समय में मिल्खा सिंह ने यह दौड़ पूरी की थी।दूसरा गोल्ड मेडल और खास था। 200 मीटर की दौड़ में मिल्खा ने चिर-प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के अब्दुल खालिद को पछाड़ा था। खालिद ने गेम्स के नए रेकॉर्ड के साथ 100 मीटर में गोल्ड मेडल जीता था।

उन दिनों खालिद को एशिया का सर्वश्रेष्ठ फर्राटा धावक माना जाता था। मिल्खा सिंह, भी उस दौर में शानदार फॉर्म में थे। उन्होंने महज 21.6 सेकंड में गोल्ड मेडल जीतकर एशियन गेम्स का नया रेकॉर्ड बना डाला। फिनिशिंग लाइन पर टांग की मांसपेशियों में खिंचाव आने की वजह से वह गिर गए थे। वह 0.1 सेकंड के अंतर से जीते और लोगों ने स्वीकार कर लिया कि इस एथलीट को अभी और ऊपर जाना है।एशियन गेम्स में दो गोल्ड मेडल जीतने के बाद मिल्खा सिंह के हौसले बुलंद थे। इसके बाद कॉमनवेल्थ गेम्स हुए, जिसमें मिल्खा ने वह मुकाम हासिल किया, जो भारतीय ऐथलेटिक्स की दुनिया के सबसे यादगार लम्हों के रूप में आज तक दर्ज है। एशियन गेम्स में उनकी उपलब्धि कमाल की थी, लेकिन कॉमनवेल्थ गेम्स (जिन्हें उस समय ‘एम्पायर गेम्स’ कहा जाता था) में मिल्खा के पास दुनिया के कुछ बेहतरीन ऐथलीट्स के सामने खुद को साबित करने का मौका था।मिल्खा सिंह ने कई साल बाद दिए एक इंटरव्यू में कहा था मुझे यकीन नहीं था कि मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीत पाऊंगा। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं वर्ल्ड रेकॉर्डधारी मेलकम स्पेंस के साथ दौड़ रहा था। वह 400 मीटर के बेस्ट धावक थे। मिल्खा के अमेरिकी कोच डॉक्टर आर्थर हावर्ड ने स्पेन्स की रणनीति को पकड़ लिया था। उन्होंने देखा कि वह आखिर में तेज दौड़ता है। और उन्होंने मिल्खा सिंह से पूरी रेस में दम लगाकर दौड़ने को कहा। मिल्खा की यह चाल कामयाब रही। 440 गज की दौड़ में मिल्खा शुरू से अंत तक आगे रहे। इस दौरान उन्होंने 46.6 सेकंड का समय लेकर नया नेशनल रेकॉर्ड भी बनाया। इस तरह मिल्खा सिंह कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैंक एंड फील्ड में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बने। उनका यह रेकॉर्ड 52 साल तक कायम रहा।

इसके बाद डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया ने 2010 के गेम्स में गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद विकास गौड़ा ने 2014 में स्वर्ण पदक हासिल किया। मिल्खा सिंह के स्वर्ण पदक पर उस दौर में खूब जश्न हुआ। उनके अनुरोध पर तब के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक दिन का राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया था। 1958 मिल्खा के करियर का सर्वश्रेष्ठ साल रहा। इसके बाद 1959 में उन्होंने कई यूरोपीय प्रतिस्पर्धाओं में जीत हासिल की। वह 1960 के रोम ओलिंपिक के लिए तैयार हो रहे थे। यहां वह जीत तो नहीं सके, लेकिन 45.73 सेकंड का समय निकालकर उन्होंने 400 मीटर का नया राष्ट्रीय रेकॉर्ड बना डाला। यह इवेंट मिल्खा की पहचान के साथ जुड़ गया। सन 1960 की इस घटना के बाद मिल्खा सिंह ने एक बार फिर जोश दिखाया। और 1962 के जकार्ता एशियन गेम्स में दो और गोल्ड मेडल जीते। मिल्खा के लिए बड़ी चुनौती उभरता हुआ सितारा माखन सिंह था। माखन ने उस साल नेशनल चैंपियनशिप में मिल्खा को हरा दिया था।

मिल्खा ने बाद में एक बार कहा था  अगर ट्रैक पर मुझे किसी से डर लगता था तो वह माखन है। वह शानदार ऐथलीट था। उसने मेरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करवाया। हालांकि एशियन गेम्स के 400 मीटर के फाइनल के दिन मिल्खा ने फिर स्वर्ण पदक जीता और युवा साथी को आधे सेकंड के अंतर से मात दे दी। यह जोड़ी 4×400 मीटर की टीम में साथ आई। इनके साथ दलजीत सिंह और जगदीश सिंह भी थे। इन्होंने एशियन गेम्स का रेकॉर्ड बनाते हुए गोल्ड मेडल जीता। उन्होंने 3:10.2 सेकंड का समय लिया। जीते जी किंवदंती बने मिल्खा सिंह के नाम कुल 10 एशियन गोल्ड मेडल दर्ज हैं।

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